श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग : भगवान्
का वरदान
ब्रहमाजी और देवताओं की स्तुति के उपरान्त देवताओं और पृथ्वी को भयभीत जानकर और उनके
स्नेहयुक्त वचन सुनकर शोक और संदेह को हरने वाली गंभीर आकाशवाणी हुई ।
हे मुनि, सिद्ध और देवताओं के स्वामियों! डरो मत। तुम्हारे लिए मैं मनुष्य का
रूप धारण करूँगा और पवित्र सूर्यवंश में अंशों सहित मनुष्य का अवतार लूँगा ।
कश्यप और अदिति ने
बड़ा भारी तप किया था। मैं पहले ही उनको वर दे चुका हूँ। वे ही दशरथ और कौसल्या के
रूप में मनुष्यों के राजा होकर श्री अयोध्यापुरी में प्रकट हुए हैं ।
उन्हीं के घर जाकर
मैं रघुकुल में श्रेष्ठ चार भाइयों के रूप में अवतार लूँगा। नारद के सब वचन मैं
सत्य करूँगा और अपनी पराशक्ति के सहित अवतार लूँगा ।
मैं पृथ्वी का सब
भार हर लूँगा। हे देववृंद! तुम निर्भय हो जाओ। आकाश में ब्रह्म (भगवान) की वाणी को
कान से सुनकर देवता तुरंत लौट गए। उनका हृदय शीतल हो गया । तब ब्रह्माजी ने पृथ्वी
को समझाया। वह भी निर्भय हुई और उसके जी में ढाढस आ गया ।
देवताओं को यही
सिखाकर कि वानरों का शरीर धर-धरकर तुम लोग पृथ्वी पर जाकर भगवान के चरणों की सेवा
करो, ब्रह्माजी अपने लोक को चले गए ।
दोहा :
* जानि सभय सुर भूमि सुनि बचन समेत सनेह।
गगनगिरा गंभीर भइ हरनि सोक संदेह॥186॥
गगनगिरा गंभीर भइ हरनि सोक संदेह॥186॥
चौपाई :
* जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा। तुम्हहि लागि
धरिहउँ नर बेसा॥
अंसन्ह सहित मनुज अवतारा। लेहउँ दिनकर बंस उदारा॥1॥
अंसन्ह सहित मनुज अवतारा। लेहउँ दिनकर बंस उदारा॥1॥
* कस्यप अदिति महातप कीन्हा। तिन्ह कहुँ मैं पूरब
बर दीन्हा॥
ते दसरथ कौसल्या रूपा। कोसलपुरीं प्रगट नर भूपा॥2॥
ते दसरथ कौसल्या रूपा। कोसलपुरीं प्रगट नर भूपा॥2॥
* तिन्ह कें गृह अवतरिहउँ जाई। रघुकुल तिलक सो
चारिउ भाई॥
नारद बचन सत्य सब करिहउँ। परम सक्ति समेत अवतरिहउँ॥3॥
नारद बचन सत्य सब करिहउँ। परम सक्ति समेत अवतरिहउँ॥3॥
* हरिहउँ सकल भूमि गरुआई। निर्भय होहु देव समुदाई॥
गगन ब्रह्मबानी सुनि काना। तुरत फिरे सुर हृदय जुड़ाना॥4॥
गगन ब्रह्मबानी सुनि काना। तुरत फिरे सुर हृदय जुड़ाना॥4॥
* तब ब्रह्माँ धरनिहि समुझावा। अभय भई भरोस जियँ
आवा॥5॥
दोहा :
* निज लोकहि बिरंचि गे देवन्ह इहइ सिखाइ।
बानर तनु धरि धरि महि हरि पद सेवहु जाइ॥187॥
बानर तनु धरि धरि महि हरि पद सेवहु जाइ॥187॥
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