श्रीरामचरितमानस
से ...बालकांड
प्रसंग:
ब्रहमाजी की देवताओं के साथ भगवान की स्तुति
शिवजी
ने पार्वती जी से कहा -मेरी बात सुनकर ब्रह्माजी के मन में बड़ा हर्ष
हुआ, उनका तन पुलकित
हो गया और नेत्रों से (प्रेम के) आँसू बहने लगे। तब वे धीरबुद्धि ब्रह्माजी
सावधान होकर हाथ जोड़कर स्तुति करने लगे ।
छन्द
:
· जय जय सुरनायक
जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता।
गो
द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधुसुता प्रिय कंता॥
पालन
सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई।
जो
सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई॥1॥
हे
देवताओं के स्वामी, सेवकों को सुख
देने वाले, शरणागत की
रक्षा करने वाले भगवान! आपकी जय हो! जय हो!! हे गो-ब्राह्मणों का हित करने
वाले, असुरों का
विनाश करने वाले, समुद्र की
कन्या (श्री लक्ष्मीजी) के प्रिय स्वामी! आपकी जय हो! हे देवता और पृथ्वी का
पालन करने वाले! आपकी लीला अद्भुत है, उसका भेद कोई नहीं जानता। ऐसे जो स्वभाव से ही
कृपालु और दीनदयालु हैं, वे ही हम पर कृपा करें ।
· जय जय अबिनासी
सब घट बासी ब्यापक परमानंदा।
अबिगत
गोतीतं चरित पुनीतं मायारहित मुकुंदा॥
जेहि
लागि बिरागी अति अनुरागी बिगत मोह मुनिबृंदा।
निसि
बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं जयति सच्चिदानंदा॥2॥
हे अविनाशी, सबके हृदय में
निवास करने वाले (अन्तर्यामी), सर्वव्यापक, परम आनंदस्वरूप, अज्ञेय, इन्द्रियों से परे, पवित्र चरित्र, माया से रहित
मुकुंद (मोक्षदाता)! आपकी जय हो! जय हो!! (इस लोक और परलोक के सब भोगों से)
विरक्त तथा मोह से सर्वथा छूटे हुए (ज्ञानी) मुनिवृन्द भी अत्यन्त अनुरागी
(प्रेमी) बनकर जिनका रात-दिन ध्यान करते हैं और जिनके गुणों के समूह का गान
करते हैं, उन सच्चिदानंद
की जय हो ।
· जेहिं सृष्टि
उपाई त्रिबिध बनाई संग सहाय न दूजा।
सो
करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति न पूजा॥
जो
भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा।
मन
बच क्रम बानी छाड़ि सयानी सरन सकल सुरजूथा॥3॥
जिन्होंने बिना किसी दूसरे संगी अथवा
सहायक के अकेले ही (या स्वयं अपने को त्रिगुणरूप- ब्रह्मा, विष्णु, शिवरूप- बनाकर
अथवा बिना किसी उपादान-कारण के अर्थात् स्वयं ही सृष्टि का
अभिन्ननिमित्तोपादान कारण बनकर) तीन प्रकार की सृष्टि उत्पन्न की, वे पापों का
नाश करने वाले भगवान हमारी सुधि लें। हम न भक्ति जानते हैं, न पूजा, जो संसार के
(जन्म-मृत्यु के) भय का नाश करने वाले, मुनियों के मन को आनंद देने वाले और
विपत्तियों के समूह को नष्ट करने वाले हैं। हम सब देवताओं के समूह, मन, वचन और कर्म से
चतुराई करने की बान छोड़कर उन (भगवान) की शरण (आए) हैं ।
· सारद श्रुति
सेषा रिषय असेषा जा कहुँ कोउ नहिं जाना।
जेहि
दीन पिआरे बेद पुकारे द्रवउ सो श्रीभगवाना॥
भव
बारिधि मंदर सब बिधि सुंदर गुनमंदिर सुखपुंजा।
मुनि
सिद्ध सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कंजा॥4॥
सरस्वती, वेद, शेषजी और
सम्पूर्ण ऋषि कोई भी जिनको नहीं जानते, जिन्हें दीन प्रिय हैं, ऐसा वेद
पुकारकर कहते हैं, वे ही श्री
भगवान हम पर दया करें। हे संसार रूपी समुद्र के (मथने के) लिए मंदराचल रूप, सब प्रकार से
सुंदर, गुणों के धाम
और सुखों की राशि नाथ! आपके चरण कमलों में मुनि, सिद्ध और सारे देवता भय से अत्यन्त व्याकुल
होकर नमस्कार करते हैं ।
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