श्रीरामचरितमानस से
...बालकांड
प्रसंग : श्री भगवान् का प्राकट्य
देवताओं
के समूह विनती करके अपने-अपने लोक में जा पहुँचे। समस्त लोकों को शांति देने वाले, जगदाधार प्रभु प्रकट हुए ।
छन्द :
* भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुजचारी।
भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी॥1॥
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुजचारी।
भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी॥1॥
दीनों पर दया करने
वाले, कौसल्याजी के हितकारी कृपालु प्रभु प्रकट हुए।
मुनियों के मन को हरने वाले उनके अद्भुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गई।
नेत्रों को आनंद देने वाला मेघ के समान श्याम शरीर था, चारों भुजाओं में अपने (खास) आयुध (धारण किए हुए) थे, (दिव्य) आभूषण और वनमाला पहने थे, बड़े-बड़े नेत्र थे।
इस प्रकार शोभा के समुद्र तथा खर राक्षस को मारने वाले भगवान प्रकट हुए।
* कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं
अनंता।
माया गुन ग्यानातीत अमाना बेद पुरान भनंता॥
करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता।
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीकंता॥2॥
माया गुन ग्यानातीत अमाना बेद पुरान भनंता॥
करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता।
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीकंता॥2॥
दोनों हाथ जोड़कर
माता कहने लगी- हे अनंत! मैं किस प्रकार तुम्हारी स्तुति करूँ। वेद और पुराण तुम
को माया, गुण और ज्ञान से परे और परिमाण रहित बतलाते हैं।
श्रुतियाँ और संतजन दया और सुख का समुद्र, सब गुणों का धाम
कहकर जिनका गान करते हैं,
वही भक्तों पर प्रेम करने वाले लक्ष्मीपति भगवान
मेरे कल्याण के लिए प्रकट हुए हैं ।
* ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद
कहै।
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै॥
उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै।
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै॥3॥
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै॥
उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै।
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै॥3॥
वेद कहते हैं कि
तुम्हारे प्रत्येक रोम में माया के रचे हुए अनेकों ब्रह्माण्डों के समूह हैं। वे
तुम मेरे गर्भ में रहे- इस हँसी की बात के सुनने पर धीर पुरुषों की बुद्धि भी विचलित
हो जाती है। जब माता को ज्ञान उत्पन्न हुआ, तब प्रभु मुस्कुराए।
वे बहुत प्रकार के चरित्र करना चाहते हैं। अतः उन्होंने पूर्व जन्म की सुंदर कथा
कहकर माता को समझाया, जिससे उन्हें पुत्र का वात्सल्य प्रेम प्राप्त हो।
* माता पुनि बोली सो
मति डोली तजहु तात यह रूपा।
कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा॥
सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा।
यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहिं भवकूपा॥4॥
कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा॥
सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा।
यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहिं भवकूपा॥4॥
माता की वह बुद्धि
बदल गई, तब वह फिर बोली- हे तात! यह रूप छोड़कर अत्यन्त
प्रिय बाललीला करो, मेरे लिए यह सुख परम अनुपम होगा। माता का यह वचन
सुनकर देवताओं के स्वामी भगवान ने बालक (रूप) होकर रोना शुरू कर दिया। तुलसीदासजी
कहते हैं- जो इस चरित्र का गान करते हैं, वे श्री हरि का पद
पाते हैं और फिर संसार रूपी कूप में नहीं गिरते ।
दोहा :
* बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार॥192॥
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार॥192॥
ब्राह्मण, गो, देवता और संतों के लिए भगवान ने मनुष्य का अवतार
लिया। वे माया और उसके गुण (सत्, रज, तम) और इन्द्रियों से परे हैं। उनका दिव्य शरीर अपनी इच्छा से ही बना
है ,किसी कर्म बंधन से परवश होकर त्रिगुणात्मक भौतिक
पदार्थों के द्वारा नहीं ।
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