श्रीरामचरितमानस
से ...बालकांड
प्रसंग : श्री राम की बालक्रीड़ा
तुलसीदास जी कहते हैं कि जो भगवान सुख के पुंज, मोह से परे तथा
ज्ञान, वाणी और इन्द्रियों से अतीत हैं, वे दशरथ-कौसल्या के अत्यन्त प्रेम के वश होकर पवित्र बाललीला करते हैं
।
शिव जी कहते हैं कि हे
भवानी! इस प्रकार सम्पूर्ण जगत के माता-पिता श्री रामजी अवधपुर के निवासियों को
सुख देते हैं, जिन्होंने श्री रामचन्द्रजी के चरणों में प्रीति
जोड़ी है, भगवान उनको प्रेमवश बाललीला करके उन्हें
आनंद दे रहे हैं ।
श्री रघुनाथजी से
विमुख रहकर मनुष्य चाहे करोड़ों उपाय करे, परन्तु उसका संसार
बंधन कौन छुड़ा सकता है। जिसने सब चराचर जीवों को अपने वश में कर रखा है, वह माया भी प्रभु से भय खाती है ।
भगवान उस माया को
भौंह के इशारे पर नचाते हैं। ऐसे प्रभु को छोड़कर कहो, और किसका भजन किया जाए। मन, वचन और कर्म से
चतुराई छोड़कर भजते ही श्री रघुनाथजी कृपा करेंगे ।
इस प्रकार से प्रभु
श्री रामचन्द्रजी ने बालक्रीड़ा की और समस्त नगर निवासियों को सुख दिया। कौसल्याजी
कभी उन्हें गोद में लेकर हिलाती-डुलाती और कभी पालने में लिटाकर झुलाती थीं । प्रेम
में मग्न कौसल्याजी रात और दिन का बीतना नहीं जानती थीं। पुत्र के स्नेहवश माता
उनके बालचरित्रों का गान किया करतीं ।
दोहा :
* सुख संदोह मोह पर ग्यान गिरा गोतीत।
दंपति परम प्रेम बस कर सिसुचरित पुनीत॥199॥
दंपति परम प्रेम बस कर सिसुचरित पुनीत॥199॥
चौपाई :
* एहि बिधि राम जगत पितु माता। कोसलपुर बासिन्ह
सुखदाता॥
जिन्ह रघुनाथ चरन रति मानी। तिन्ह की यह गति प्रगट भवानी॥1॥
जिन्ह रघुनाथ चरन रति मानी। तिन्ह की यह गति प्रगट भवानी॥1॥
* रघुपति बिमुख जतन कर कोरी। कवन सकइ भव बंधन छोरी॥
जीव चराचर बस कै राखे। सो माया प्रभु सों भय भाखे॥2॥
जीव चराचर बस कै राखे। सो माया प्रभु सों भय भाखे॥2॥
* भृकुटि बिलास नचावइ ताही। अस प्रभु छाड़ि भजिअ कहु
काही॥
मन क्रम बचन छाड़ि चतुराई। भजत कृपा करिहहिं रघुराई॥3॥
मन क्रम बचन छाड़ि चतुराई। भजत कृपा करिहहिं रघुराई॥3॥
* एहि बिधि सिसुबिनोद प्रभु कीन्हा। सकल नगरबासिन्ह
सुख दीन्हा॥
लै उछंग कबहुँक हलरावै। कबहुँ पालने घालि झुलावै॥4॥
लै उछंग कबहुँक हलरावै। कबहुँ पालने घालि झुलावै॥4॥
दोहा :
* प्रेम मगन कौसल्या निसि दिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान॥200॥
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान॥200॥
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