श्रीरामचरितमानस
से ...बालकांड
प्रसंग : बालरूप श्री राम के सौंदर्य का वर्णन
तुलसीदास जी कहते हैं की जो सर्वव्यापक, निरंजन
(मायारहित), निर्गुण, विनोदरहित और अजन्मे
ब्रह्म हैं, वही प्रेम और भक्ति के वश कौसल्याजी की गोद में
खेल रहे हैं ।
* काम कोटि छबि स्याम सरीरा। नील कंज बारिद गंभीरा॥
नअरुन चरन पंकज नख जोती। कमल दलन्हि बैठे जनु मोती॥1॥
नअरुन चरन पंकज नख जोती। कमल दलन्हि बैठे जनु मोती॥1॥
उनके नीलकमल और
गंभीर (जल से भरे हुए) मेघ के समान श्याम शरीर में करोड़ों कामदेवों की शोभा है।
लाल-लाल चरण कमलों के नखों की ज्योति ऐसी मालूम होती है जैसे लाल कमल के पत्तों पर
मोती स्थिर हो गए हों ।
* रेख कुलिस ध्वज अंकुस सोहे। नूपुर धुनि सुनि मुनि
मन मोहे॥
कटि किंकिनी उदर त्रय रेखा। नाभि गभीर जान जेहिं देखा॥2॥
कटि किंकिनी उदर त्रय रेखा। नाभि गभीर जान जेहिं देखा॥2॥
चरणतलों में वज्र, ध्वजा और अंकुश के चिह्न शोभित हैं। नूपुर (पेंजनी) की ध्वनि सुनकर
मुनियों का भी मन मोहित हो जाता है। कमर में करधनी और पेट पर तीन रेखाएँ (त्रिवली)
हैं। नाभि की गंभीरता को तो वही जानते हैं, जिन्होंने उसे देखा
है ।
* भुज बिसाल भूषन जुत भूरी। हियँ हरि नख अति सोभा
रूरी॥
उर मनिहार पदिक की सोभा। बिप्र चरन देखत मन लोभा॥3॥
उर मनिहार पदिक की सोभा। बिप्र चरन देखत मन लोभा॥3॥
बहुत से आभूषणों से
सुशोभित विशाल भुजाएँ हैं। हृदय पर बाघ के नख की बहुत ही निराली छटा है। छाती पर
रत्नों से युक्त मणियों के हार की शोभा और ब्राह्मण (भृगु) के चरण चिह्न को देखते
ही मन लुभा जाता है ।
* कंबु कंठ अति चिबुक सुहाई। आनन अमित मदन छबि छाई॥
दुइ दुइ दसन अधर अरुनारे। नासा तिलक को बरनै पारे॥4॥
दुइ दुइ दसन अधर अरुनारे। नासा तिलक को बरनै पारे॥4॥
कंठ शंख के समान
(उतार-चढ़ाव वाला, तीन रेखाओं से सुशोभित) है और ठोड़ी बहुत ही सुंदर
है। मुख पर असंख्य कामदेवों की छटा छा रही है। दो-दो सुंदर दँतुलियाँ हैं, लाल-लाल होठ हैं। नासिका और तिलक के सौंदर्य का तो वर्णन ही कौन कर
सकता है ।
* सुंदर श्रवन सुचारु कपोला। अति प्रिय मधुर तोतरे
बोला॥
चिक्कन कच कुंचित गभुआरे। बहु प्रकार रचि मातु सँवारे॥5॥
चिक्कन कच कुंचित गभुआरे। बहु प्रकार रचि मातु सँवारे॥5॥
सुंदर कान और बहुत
ही सुंदर गाल हैं। मधुर तोतले शब्द बहुत ही प्यारे लगते हैं। जन्म के समय से रखे
हुए चिकने और घुँघराले बाल हैं, जिनको माता ने बहुत
प्रकार से बनाकर सँवार दिया है ।
* पीत झगुलिआ तनु पहिराई। जानु पानि बिचरनि मोहि
भाई॥
रूप सकहिं नहिं कहि श्रुति सेषा। सो जानइ सपनेहुँ जेहिं देखा॥6॥
रूप सकहिं नहिं कहि श्रुति सेषा। सो जानइ सपनेहुँ जेहिं देखा॥6॥
भावार्थ:-शरीर पर पीली झँगुली पहनाई हुई है। उनका घुटनों
और हाथों के बल चलना मुझे बहुत ही प्यारा लगता है। उनके रूप का वर्णन वेद और शेषजी
भी नहीं कर सकते। उसे वही जानता है, जिसने कभी स्वप्न
में भी देखा हो ।
दोहा :
* सुख संदोह मोह पर ग्यान गिरा गोतीत।
दंपति परम प्रेम बस कर सिसुचरित पुनीत॥199॥
दंपति परम प्रेम बस कर सिसुचरित पुनीत॥199॥
जो सुख के पुंज, मोह से परे तथा ज्ञान, वाणी और इन्द्रियों
से अतीत हैं, वे भगवान दशरथ-कौसल्या के अत्यन्त प्रेम के वश
होकर पवित्र बाललीला करते हैं ।
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