श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग : रानियों का गर्भवती होना
वशिष्ठजी ने
श्रृंगी ऋषि को बुलवाया और उनसे शुभ पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया। मुनि के भक्ति
सहित आहुतियाँ देने पर अग्निदेव हाथ में चरु (हविष्यान्न खीर) लिए प्रकट हुए ।
और दशरथ से बोले -वशिष्ठ ने हृदय में जो कुछ विचारा था, तुम्हारा वह सब काम सिद्ध हो गया। हे राजन्!
अब तुम जाकर इस हविष्यान्न (पायस) को, जिसको जैसा उचित
हो, वैसा भाग बनाकर बाँट दो ।
तदनन्तर अग्निदेव
सारी सभा को समझाकर अन्तर्धान हो गए। राजा परमानंद में मग्न हो गए, उनके हृदय में हर्ष समाता न था ।
दोहा :
* तब अदृस्य भए पावक सकल सभहि समुझाइ।
परमानंद मगन नृप हरष न हृदयँ समाइ॥189॥
चौपाई :
* तबहिं रायँ प्रिय नारि बोलाईं। कौसल्यादि तहाँ
चलि आईं॥
अर्ध भाग कौसल्यहि दीन्हा। उभय भाग आधे कर कीन्हा॥1॥
* कैकेई कहँ नृप सो दयऊ। रह्यो सो उभय भाग पुनि भयऊ॥
कौसल्या कैकेई हाथ धरि। दीन्ह सुमित्रहि मन प्रसन्न करि॥2॥
* एहि बिधि गर्भसहित सब नारी। भईं हृदयँ हरषित
सुख भारी॥
जा दिन तें हरि गर्भहिं आए। सकल लोक सुख संपति छाए॥3॥
* मंदिर महँ सब राजहिं रानीं। सोभा सील तेज की
खानीं॥
सुख जुत कछुक काल चलि गयऊ। जेहिं प्रभु प्रगट सो अवसर भयऊ॥4॥ |
सोमवार, 11 जनवरी 2016
189 : बालकांड :रानियों का गर्भवती होना
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