श्रीरामचरितमानस से
...बालकांड
प्रसंग : श्री भगवान् ने
मनुष्य का अवतार लिया।
ब्राह्मण, गो, देवता और संतों के लिए भगवान ने मनुष्य का अवतार
लिया। वे माया और उसके गुण (सत्, रज, तम) और बाहरी तथा भीतरी इन्द्रियों से परे हैं। उनका दिव्य शरीर अपनी
इच्छा से ही बना है ,किसी कर्म बंधन से परवश होकर त्रिगुणात्मक भौतिक
पदार्थों के द्वारा नहीं।
बच्चे के रोने की
बहुत ही प्यारी ध्वनि सुनकर सब रानियाँ उतावली होकर दौड़ी चली आईं। दासियाँ हर्षित
होकर जहाँ-तहाँ दौड़ीं। सारे पुरवासी आनंद में मग्न हो गए ।
राजा दशरथजी पुत्र
का जन्म कानों से सुनकर मानो ब्रह्मानंद में समा गए। मन में अतिशय प्रेम है, शरीर पुलकित हो गया। आनंद में अधीर हुई बुद्धि को धीरज देकर और प्रेम
में शिथिल हुए शरीर को संभालकर वे उठना चाहते हैं ।
वही प्रभु ,जिनका नाम सुनने से ही कल्याण होता है, मेरे घर
आए हैं। यह सोचकर राजा का मन परम आनंद से पूर्ण हो गया। उन्होंने बाजे वालों को
बुलाकर कहा कि बाजा बजाओ ।
गुरु वशिष्ठजी के
पास बुलावा गया। वे ब्राह्मणों को साथ लिए राजद्वार पर आए। उन्होंने जाकर अनुपम
बालक को देखा, जो रूप की राशि है और जिसके गुण कहने से समाप्त
नहीं होते ।
फिर राजा ने
नांदीमुख श्राद्ध करके सब जातकर्म-संस्कार आदि किए और ब्राह्मणों को सोना, गो, वस्त्र और मणियों का दान दिया ।
दोहा :
* बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार॥192॥
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार॥192॥
चौपाई :
* सुनि सिसु रुदन परम प्रिय बानी। संभ्रम चलि आईं
सब रानी॥
हरषित जहँ तहँ धाईं दासी। आनँद मगन सकल पुरबासी॥1॥
हरषित जहँ तहँ धाईं दासी। आनँद मगन सकल पुरबासी॥1॥
* दसरथ पुत्रजन्म सुनि काना। मानहु ब्रह्मानंद
समाना॥
परम प्रेम मन पुलक सरीरा। चाहत उठन करत मति धीरा॥2॥
परम प्रेम मन पुलक सरीरा। चाहत उठन करत मति धीरा॥2॥
* जाकर नाम सुनत सुभ होई। मोरें गृह आवा प्रभु सोई॥
परमानंद पूरि मन राजा। कहा बोलाइ बजावहु बाजा॥3॥
परमानंद पूरि मन राजा। कहा बोलाइ बजावहु बाजा॥3॥
* गुर बसिष्ठ कहँ गयउ हँकारा। आए द्विजन सहित
नृपद्वारा॥
अनुपम बालक देखेन्हि जाई। रूप रासि गुन कहि न सिराई॥4॥
अनुपम बालक देखेन्हि जाई। रूप रासि गुन कहि न सिराई॥4॥
दोहा :
* नंदीमुख सराध करि जातकरम सब कीन्ह।
हाटक धेनु बसन मनि नृप बिप्रन्ह कहँ दीन्ह॥193॥
हाटक धेनु बसन मनि नृप बिप्रन्ह कहँ दीन्ह॥193॥
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