श्रीरामचरितमानस से
...बालकांड
प्रसंग : राजा का सबकी
इच्छानुसार उपहार देना
अयोध्या में उल्लास के महीने
भर का दिन बीत गया। इस
रहस्य को कोई नहीं जानता। सूर्य अपने रथ सहित वहीं रुक गए, फिर रात किस तरह होती ।परंतु यह रहस्य किसी ने नहीं जाना। सूर्यदेव भगवान श्री रामजी का गुणगान
करते हुए चले। यह महोत्सव देखकर देवता, मुनि और नाग अपने
भाग्य की सराहना करते हुए अपने-अपने घर चले ।
शिव जी कहते हैं - हे पार्वती! तुम्हारी बुद्धि रामजी के चरणों में बहुत दृढ़ है, इसलिए मैं और भी अपनी एक छिपाव की बात कहता हूँ, सुनो। काकभुशुण्डि और मैं दोनों वहाँ साथ-साथ थे, परन्तु मनुष्य रूप में होने के कारण हमें कोई जान न सका । आनंद और
प्रेम के सुख में फूले हुए हम दोनों मगन मन थे और गलियों में तन-मन की सुधि भूले हुए फिरते थे, परन्तु यह शुभ चरित्र वही जान सकता है, जिस पर
श्री रामजी की कृपा हो ।
उस अवसर पर जो जिस
प्रकार आया और जिसके मन को जो अच्छा लगा, राजा ने उसे वही
दिया। हाथी, रथ, घोड़े, सोना, गायें, हीरे और भाँति-भाँति
के वस्त्र राजा ने दिए । राजा ने सबके मन को संतुष्ट किया। (इसी से) सब लोग
जहाँ-तहाँ आशीर्वाद दे रहे थे कि तुलसीदास के स्वामी सब पुत्र(चारों राजकुमार)
चिरजीवी हों।
* मास दिवस कर दिवस भा मरम न जानइ कोइ।
रथ समेत रबि थाकेउ निसा कवन बिधि होइ॥195॥
रथ समेत रबि थाकेउ निसा कवन बिधि होइ॥195॥
चौपाई :
* यह रहस्य काहूँ नहिं जाना। दिनमनि चले करत
गुनगाना॥
देखि महोत्सव सुर मुनि नागा। चले भवन बरनत निज भागा॥1॥
देखि महोत्सव सुर मुनि नागा। चले भवन बरनत निज भागा॥1॥
* औरउ एक कहउँ निज चोरी। सुनु गिरिजा अति दृढ़ मति
तोरी॥
काकभुसुंडि संग हम दोऊ। मनुजरूप जानइ नहिं कोऊ॥2॥
काकभुसुंडि संग हम दोऊ। मनुजरूप जानइ नहिं कोऊ॥2॥
* परमानंद प्रेम सुख फूले। बीथिन्ह फिरहिं मगन मन
भूले॥
यह सुभ चरित जान पै सोई। कृपा राम कै जापर होई॥3॥
यह सुभ चरित जान पै सोई। कृपा राम कै जापर होई॥3॥
* तेहि अवसर जो जेहि बिधि आवा। दीन्ह भूप जो जेहि
मन भावा॥
गज रथ तुरग हेम गो हीरा। दीन्हे नृप नानाबिधि चीरा॥4॥
गज रथ तुरग हेम गो हीरा। दीन्हे नृप नानाबिधि चीरा॥4॥
दोहा :
* मन संतोषे सबन्हि के जहँ तहँ देहिं असीस।
सकल तनय चिर जीवहुँ तुलसिदास के ईस॥196॥
सकल तनय चिर जीवहुँ तुलसिदास के ईस॥196॥
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