श्रीरामचरितमानस
से ...बालकांड
प्रसंग : माता
कौसल्या ने देखा वह अद्भुत रूप
तुलसीदास
जी कहते हैं कि बालरूप श्री राम ने
फिर माता को अपना
अखंड अद्भुत रूप दिखलाया,
जिसके एक-एक रोम में करोड़ों ब्रह्माण्ड
लगे हुए हैं ।
अगणित सूर्य, चन्द्रमा, शिव, ब्रह्मा, बहुत से पर्वत, नदियाँ, समुद्र, पृथ्वी, वन, काल, कर्म, गुण, ज्ञान और स्वभाव
देखे और वे पदार्थ भी देखे जो कभी सुने भी न थे ।
सब प्रकार से
बलवती माया को देखा कि वह भगवान के सामने अत्यन्त भयभीत हाथ जोड़े खड़ी है। जीव को
देखा, जिसे वह माया नचाती है और फिर भक्ति को देखा, जो उस जीव को माया से छुड़ा देती है ।फिर
माता का शरीर पुलकित हो गया, मुख से वचन नहीं निकलता। तब आँखें मूँदकर उसने
श्री रामचन्द्रजी के चरणों में सिर नवाया। माता को आश्चर्यचकित देखकर खर के शत्रु
श्री रामजी फिर बाल रूप हो गए ।
माता से स्तुति भी
नहीं की जाती। वह डर गई कि मैंने जगत्पिता परमात्मा को पुत्र करके जाना। श्री
हरि ने माता को बहुत प्रकार से समझाया और कहा- हे माता! सुनो, यह बात कहीं पर कहना नहीं ।
कौसल्याजी बार-बार
हाथ जोड़कर विनय करती हैं कि हे प्रभो! मुझे आपकी माया अब कभी न व्यापे ।
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दोहा :
* देखरावा मातहि निज अद्भुत रूप अखंड।
रोम रोम प्रति लागे कोटि कोटि ब्रह्मंड॥201॥
चौपाई :
* अगनित रबि ससि सिव चतुरानन। बहु गिरि सरित
सिंधु महि कानन॥
काल कर्म गुन ग्यान सुभाऊ। सोउ देखा जो सुना न काऊ॥1॥
* देखी माया सब बिधि गाढ़ी। अति सभीत जोरें कर
ठाढ़ी॥
देखा जीव नचावइ जाही। देखी भगति जो छोरइ ताही॥2॥
* तन पुलकित मुख बचन न आवा। नयन मूदि चरननि सिरु
नावा॥
बिसमयवंत देखि महतारी। भए बहुरि सिसुरूप खरारी॥3॥
* अस्तुति करि न जाइ भय माना। जगत पिता मैं सुत
करि जाना॥
हरि जननी बहुबिधि समुझाई। यह जनि कतहुँ कहसि सुनु माई॥4॥
दोहा :
* बार बार कौसल्या बिनय करइ कर जोरि।
अब जनि कबहूँ ब्यापै प्रभु मोहि माया तोरि॥202॥ |
गुरुवार, 21 जनवरी 2016
201-202 :बालकांड: माता कौसल्या ने देखा वह अद्भुत रूप
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