रामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग: श्री रामचन्द्रजी के विवाह की
रीति की भांति सब राजकुमार विवाहे गए।
श्री रामचन्द्रजी के विवाह की जैसी विधि वर्णन
की गई, उसी रीति से सब राजकुमार विवाहे गए। दहेज की
अधिकता कुछ कही नहीं जाती, सारा मंडप सोने और मणियों से भर
गया । बहुत से कम्बल, वस्त्र और भाँति-भाँति के विचित्र
रेशमी कपड़े, जो
बहुमूल्य थे तथा हाथी, रथ, घोड़े,
दास-दासियाँ और गहनों से सजी हुई कामधेनु सरीखी गायें-आदि अनेकों
वस्तुएँ हैं, जिनकी गिनती कैसे की जाए। उनका वर्णन नहीं किया
जा सकता, जिन्होंने देखा है, वही जानते
हैं। उन्हें देखकर लोकपाल भी सिहा गए। अवधराज दशरथजी ने सुख मानकर प्रसन्नचित्त से
सब कुछ ग्रहण किया । उन्होंने वह दहेज का सामान याचकों को, जो
जिसे अच्छा लगा, दे दिया। जो बच रहा, वह
जनवासे में चला आया। तब जनकजी हाथ जोड़कर सारी बारात का सम्मान करते हुए कोमल वाणी
से बोले -
दो0-मुदित अवधपति सकल
सुत बधुन्ह समेत निहारि।
जनु पार महिपाल मनि क्रियन्ह सहित फल चारि।।325।।
जसि रघुबीर ब्याह बिधि बरनी। सकल कुअँर ब्याहे तेहिं करनी।।
कहि न जाइ कछु दाइज भूरी। रहा कनक मनि मंडपु पूरी।।
कंबल बसन बिचित्र पटोरे। भाँति भाँति बहु मोल न थोरे।।
गज रथ तुरग दास अरु दासी। धेनु अलंकृत कामदुहा सी।।
बस्तु अनेक करिअ किमि लेखा। कहि न जाइ जानहिं जिन्ह देखा।।
लोकपाल अवलोकि सिहाने। लीन्ह अवधपति सबु सुखु माने।।
दीन्ह जाचकन्हि जो जेहि भावा। उबरा सो जनवासेहिं आवा।।
तब कर जोरि जनकु मृदु बानी। बोले सब बरात सनमानी।।
जनु पार महिपाल मनि क्रियन्ह सहित फल चारि।।325।।
जसि रघुबीर ब्याह बिधि बरनी। सकल कुअँर ब्याहे तेहिं करनी।।
कहि न जाइ कछु दाइज भूरी। रहा कनक मनि मंडपु पूरी।।
कंबल बसन बिचित्र पटोरे। भाँति भाँति बहु मोल न थोरे।।
गज रथ तुरग दास अरु दासी। धेनु अलंकृत कामदुहा सी।।
बस्तु अनेक करिअ किमि लेखा। कहि न जाइ जानहिं जिन्ह देखा।।
लोकपाल अवलोकि सिहाने। लीन्ह अवधपति सबु सुखु माने।।
दीन्ह जाचकन्हि जो जेहि भावा। उबरा सो जनवासेहिं आवा।।
तब कर जोरि जनकु मृदु बानी। बोले सब बरात सनमानी।।
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