शुक्रवार, 9 सितंबर 2016

322-सीताजी मंडप में आईं...









रामचरितमानस से ...बालकांड

प्रसंग: सीताजी मंडप में आईं और दोनों कुलगुरुओं ने उस अवसर की सब रीति, व्यवहार और कुलाचार किए।

सीताजी सहज ही स्त्रियों के समूह में इस प्रकार शोभा पा रही हैं, मानो छबि रूपी ललनाओं के समूह के बीच साक्षात परम मनोहर शोभा रूपी स्त्री सुशोभित हो॥
 तुलसीदासजी कहते हैं कि सीताजी की सुंदरता का वर्णन नहीं हो सकता, क्योंकि बुद्धि बहुत छोटी है और मनोहरता बहुत बड़ी है। रूप की राशि और सब प्रकार से पवित्र सीताजी को बारातियों ने आते देखा ।
सभी ने उन्हें मन ही मन प्रणाम किया। श्री रामचन्द्रजी को देखकर तो सभी कृतकृत्य हो गए। राजा दशरथजी पुत्रों सहित हर्षित हुए। उनके हृदय में जितना आनंद था, वह कहा नहीं जा सकता ।
देवता प्रणाम करके फूल बरसा रहे हैं। मंगलों की मूल मुनियों के आशीर्वादों की ध्वनि हो रही है। गानों और नगाड़ों के शब्द से बड़ा शोर मच रहा है। सभी नर-नारी प्रेम और आनंद में मग्न हैं ।
इस प्रकार सीताजी मंडप में आईं। मुनिराज बहुत ही आनंदित होकर शांतिपाठ पढ़ रहे हैं। उस अवसर की सब रीति, व्यवहार और कुलाचार दोनों कुलगुरुओं ने किए।

दो0-सोहति बनिता बृंद महुँ सहज सुहावनि सीय।
छबि ललना गन मध्य जनु सुषमा तिय कमनीय।।322।।
सिय सुंदरता बरनि न जाई। लघु मति बहुत मनोहरताई।।
आवत दीखि बरातिन्ह सीता।।रूप रासि सब भाँति पुनीता।।
सबहि मनहिं मन किए प्रनामा। देखि राम भए पूरनकामा।।
हरषे दसरथ सुतन्ह समेता। कहि न जाइ उर आनँदु जेता।।
सुर प्रनामु करि बरसहिं फूला। मुनि असीस धुनि मंगल मूला।।
गान निसान कोलाहलु भारी। प्रेम प्रमोद मगन नर नारी।।
एहि बिधि सीय मंडपहिं आई। प्रमुदित सांति पढ़हिं मुनिराई।।
तेहि अवसर कर बिधि ब्यवहारू। दुहुँ कुलगुर सब कीन्ह अचारू।।

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