गुरुवार, 19 जून 2014
बुधवार, 11 जून 2014
रविवार, 18 मई 2014
...राम-विवाह
प्रसंग
है...विवाह के पश्चात
सीता जी बार-बार रामजी को देखती
हैं और सकुचा जाती हैं, पर उनका मन नहीं सकुचाता। प्रेम के प्यासे उनके
नयन सुंदर मछलियों की छबि को हर रहे हैं :
पुनि
पुनि रामहि चितव सिय सकुचति मनु सकुचै न।
हरत मनोहर मीन छबि प्रेम पिआसे नैन॥जावक जुत पद कमल सुहाए। मुनि मन मधुप रहत जिन्ह छाए॥1॥
कल किंकिनि कटि सूत्र मनोहर। बाहु बिसाल बिभूषन सुंदर॥2॥
सोहत ब्याह साज सब साजे। उर आयत उरभूषन राजे॥3॥
नयन कमल कल कुंडल काना। बदनु सकल सौंदर्ज निदाना॥4॥
सोहत मौरु मनोहर माथे। मंगलमय मुकुता मनि गाथे॥5॥
सीता
जी सकुचा कर राम के जिस रूप को देख रही है ...उसका वर्णन तुलसीदास जी
ने इन शब्दों में किया है
...:
स्याम
सरीरु सुभायँ सुहावन। सोभा कोटि मनोज लजावन॥
*
पीत पुनीत मनोहर धोती। हरति बाल रबि दामिनि जोती॥
पीत
जनेउ महाछबि देई। कर मुद्रिका चोरि चितु लेई॥
पिअर
उपरना काखासोती। दुहुँ आँचरन्हि लगे मनि मोती॥
सुंदर
भृकुटि मनोहर नासा। भाल तिलकु रुचिरता निवासा॥
सोमवार, 12 मई 2014
मर्यादा पुरुषोत्तम के प्राकट्य का वर्णन
मर्यादा पुरुषोत्तम के प्राकट्य का वर्णन
भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी .
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ..
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध
भुज चारी .
भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी ..
भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी ..
कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि
बिधि करौं अनंता .
माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता ..
माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता ..
करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि
गावहिं श्रुति संता .
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयौ प्रकट श्रीकंता ..
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयौ प्रकट श्रीकंता ..
ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम
रोम प्रति बेद कहै .
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै ..
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै ..
उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित
बहुत बिधि कीन्ह चहै .
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ..
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ..
माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात
यह रूपा .
कीजे सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ..
कीजे सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ..
सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक
सुरभूपा .
यह चरित जे गावहि हरिपद पावहि ते न परहिं भवकूपा ..
यह चरित जे गावहि हरिपद पावहि ते न परहिं भवकूपा ..
दो0 बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज
अवतार .
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार ॥
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार ॥
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