श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
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प्रसंग : रावण की सभी दिशाओं में दिनों –दिन
संवृद्धि
रावण
ने एक बार खिलवाड़ ही में कैलास पर्वत को उठा लिया और
मानो अपनी भुजाओं का बल तौलकर, बहुत सुख पाकर वह वहाँ से चला आया ।
सुख, सम्पत्ति, पुत्र, सेना, सहायक, जय, प्रताप, बल, बुद्धि और बड़ाई- ये
सब उसके नित्य बढ़ते जाते थे, जैसे प्रत्येक लाभ पर लोभ बढ़ता है ।
अत्यन्त बलवान् कुम्भकर्ण सा उसका भाई था, जिसके जोड़ का योद्धा
जगत में पैदा ही नहीं हुआ। वह मदिरा पीकर छह महीने सोया करता था। उसके जागते ही तीनों
लोकों में तहलका मच जाता था ।
यदि वह प्रतिदिन भोजन करता, तब तो सम्पूर्ण
विश्व शीघ्र ही खाली हो जाता। रणधीर ऐसा था कि जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता।
लंका में उसके ऐसे असंख्य बलवान वीर थे ।
मेघनाद
रावण का बड़ा लड़का था, जिसका जगत के योद्धाओं में पहला नंबर था। रण में कोई भी उसका सामना नहीं
कर सकता था। स्वर्ग में तो उसके भय से नित्य भगदड़ मची रहती थी ।
इनके अतिरिक्त दुर्मुख, अकम्पन, वज्रदन्त, धूमकेतु और अतिकाय
आदि ऐसे अनेक योद्धा थे, जो अकेले ही सारे जगत को जीत सकते थे ।
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* कौतुकहीं कैलास पुनि
लीन्हेसि जाइ उठाइ।
मनहुँ तौलि निज बाहुबल चला बहुत सुख पाइ॥179॥
मनहुँ तौलि निज बाहुबल चला बहुत सुख पाइ॥179॥
चौपाई :
* सुख संपति सुत सेन
सहाई। जय प्रताप बल बुद्धि बड़ाई॥
नित नूतन सब बाढ़त जाई। जिमि प्रतिलाभ लोभ अधिकाई॥1॥
नित नूतन सब बाढ़त जाई। जिमि प्रतिलाभ लोभ अधिकाई॥1॥
* अतिबल कुंभकरन अस
भ्राता। जेहि कहुँ नहिं प्रतिभट जग जाता॥
करइ पान सोवइ षट मासा। जागत होइ तिहूँ पुर त्रासा॥2॥
करइ पान सोवइ षट मासा। जागत होइ तिहूँ पुर त्रासा॥2॥
* जौं दिन प्रति अहार
कर सोई। बिस्व बेगि सब चौपट होई॥
समर धीर नहिं जाइ बखाना। तेहि सम अमित बीर बलवाना॥3॥
समर धीर नहिं जाइ बखाना। तेहि सम अमित बीर बलवाना॥3॥
* बारिदनाद जेठ सुत
तासू। भट महुँ प्रथम लीक जग जासू॥
जेहि न होइ रन सनमुख कोई। सुरपुर नितहिं परावन होई॥4॥
जेहि न होइ रन सनमुख कोई। सुरपुर नितहिं परावन होई॥4॥
दोहा :
* कुमुख अकंपन कुलिसरद
धूमकेतु अतिकाय।
एक एक जग जीति सक ऐसे सुभट निकाय॥180॥
एक एक जग जीति सक ऐसे सुभट निकाय॥180॥