रामचरितमानस
से ...बालकांड
कुलाचार करके गुरुजी प्रसन्न होकर ब्राह्मणों के द्वारा गौरी और गणेश की पूजा
करवा रहे हैं। देवता प्रकट होकर पूजा ग्रहण करते हैं, आशीर्वाद
देते हैं और अत्यन्त सुख पा रहे हैं। मधुपर्क आदि जिस किसी भी मांगलिक पदार्थ की
मुनि जिस समय भी मन में चाह मात्र करते हैं, सेवकगण उसी समय
सोने की परातों में और कलशों में भरकर उन पदार्थों को लिए तैयार रहते हैं ।
स्वयं सूर्यदेव प्रेम सहित अपने कुल की सब
रीतियाँ बता देते हैं और वे सब आदरपूर्वक की जा रही हैं। इस प्रकार देवताओं की
पूजा कराके मुनियों ने सीताजी को सुंदर सिंहासन दिया। श्री सीताजी और श्री रामजी
का आपस में एक-दूसरे को देखना तथा उनका परस्पर का प्रेम किसी को लख नहीं पड़ रहा
है, जो बात श्रेष्ठ मन, बुद्धि और वाणी
से भी परे है,तुलसीदास जी कहते हैं कि उसे कवि क्यों कर प्रकट करे?
छं0-आचारु करि गुर गौरि
गनपति मुदित बिप्र पुजावहीं।
सुर प्रगटि पूजा लेहिं देहिं असीस अति सुखु पावहीं।।
मधुपर्क मंगल द्रब्य जो जेहि समय मुनि मन महुँ चहैं।
भरे कनक कोपर कलस सो सब लिएहिं परिचारक रहैं।।1।।
सुर प्रगटि पूजा लेहिं देहिं असीस अति सुखु पावहीं।।
मधुपर्क मंगल द्रब्य जो जेहि समय मुनि मन महुँ चहैं।
भरे कनक कोपर कलस सो सब लिएहिं परिचारक रहैं।।1।।
कुल रीति प्रीति समेत रबि कहि देत सबु सादर
कियो।
एहि भाँति देव पुजाइ सीतहि सुभग सिंघासनु
दियो।।
सिय राम अवलोकनि परसपर प्रेम काहु न लखि
परै।।
मन बुद्धि बर बानी अगोचर प्रगट कबि कैसें
करै।।2।।
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