श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग : यज्ञशाला में श्री राम-लक्ष्मण की शोभा का वर्णन
प्रसंग : यज्ञशाला में श्री राम-लक्ष्मण की शोभा का वर्णन
राजा की
आज्ञा से सेवकों ने कोमल और नम्र वचन कहकर उत्तम, मध्यम, नीच और लघु
सभी श्रेणी के स्त्री-पुरुषों को अपने-अपने योग्य स्थान पर बैठाया ।
उसी
समय राजकुमार (राम और लक्ष्मण) वहाँ आए। वे ऐसे सुंदर हैं मानो साक्षात मनोहरता ही
उनके शरीरों पर छा रही हो। सुंदर साँवला और गोरा उनका शरीर है। वे गुणों के समुद्र, चतुर और उत्तम वीर हैं
। वे राजाओं के समाज में ऐसे सुशोभित हो रहे हैं, मानो
तारागणों के बीच दो पूर्ण चन्द्रमा हों। जिनकी जैसी भावना थी, प्रभु की मूर्ति उन्होंने वैसी ही देखी ।सभी
महान
राजा श्री रामचन्द्रजी के रूप को ऐसा देख रहे हैं, मानो स्वयं वीर रस शरीर धारण किए हुए
हों। कुटिल राजा प्रभु को देखकर डर गए, मानो बड़ी भयानक
मूर्ति हो । छल से जो राक्षस वहाँ राजाओं के वेष में बैठे थे, उन्होंने प्रभु को प्रत्यक्ष काल के समान देखा। नगर निवासियों ने दोनों
भाइयों को मनुष्यों के भूषण रूप और नेत्रों को सुख देने वाला देखा।
. * कहि मृदु बचन बिनीत
तिन्ह बैठारे नर नारि।
उत्तम मध्यम नीच लघु निज निज थल अनुहारि॥240॥
उत्तम मध्यम नीच लघु निज निज थल अनुहारि॥240॥
* राजकुअँर तेहि अवसर
आए। मनहुँ मनोहरता तन छाए॥
गुन सागर नागर बर बीरा। सुंदर स्यामल गौर सरीरा॥1॥
गुन सागर नागर बर बीरा। सुंदर स्यामल गौर सरीरा॥1॥
* राज समाज बिराजत
रूरे। उडगन महुँ जनु जुग बिधु पूरे॥
जिन्ह कें रही भावना जैसी। प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी॥2॥
जिन्ह कें रही भावना जैसी। प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी॥2॥
* देखहिं रूप महा
रनधीरा। मनहुँ बीर रसु धरें सरीरा॥
डरे कुटिल नृप प्रभुहि निहारी। मनहुँ भयानक मूरति भारी॥3॥
डरे कुटिल नृप प्रभुहि निहारी। मनहुँ भयानक मूरति भारी॥3॥
* रहे असुर छल छोनिप
बेषा। तिन्ह प्रभु प्रगट कालसम देखा।
पुरबासिन्ह देखे दोउ भाई। नरभूषन लोचन सुखदाई॥4॥
पुरबासिन्ह देखे दोउ भाई। नरभूषन लोचन सुखदाई॥4॥