गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

174 :बालकांड :राजा प्रतापभानु का ब्राह्मणों का श्राप से अंत ।




श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग : राजा प्रतापभानु का ब्राह्मणों का श्राप से अंत ।
कपटी मुनि राजा प्रतापभानु से कहते हैं कि –
हे राजन! यद्यपि तुम्हारा दोष नहीं है, तो भी होनहार नहीं मिटता। ब्राह्मणों का शाप बहुत ही भयानक होता है, यह किसी तरह भी टाले टल नहीं सकता ।
ऐसा कहकर सब ब्राह्मण चले गए। नगरवासियों ने जब यह समाचार पाया, तो वे चिन्ता करने और विधाता को दोष देने लगे, जिसने हंस बनाते-बनाते कौआ कर दिया ।ऐसे पुण्यात्मा राजा को देवता बनाना चाहिए था, सो राक्षस बना दिया ।
पुरोहित को उसके घर पहुँचाकर असुर (कालकेतु) ने (कपटी) तपस्वी को खबर दी। उस दुष्ट ने जहाँ-तहाँ पत्र भेजे, जिससे सब बैरी राजा सेना सजा-सजाकर दौड़ पड़े
और उन्होंने डंका बजाकर नगर को घेर लिया। नित्य प्रति अनेक प्रकार से लड़ाई होने लगी। प्रताप भानु के सब योद्धा रण में जूझ मरे। राजा भी भाई सहित नहीं बचा ।
सत्यकेतु के कुल में कोई नहीं बचा। ब्राह्मणों का शाप झूठा कैसे हो सकता था। शत्रु को जीतकर नगर को फिर से बसाकर सब राजा विजय और यश पाकर अपने-अपने नगर को चले गए ।
दोहा :
* भूपति भावी मिटइ नहिं जदपि न दूषन तोर।
किएँ अन्यथा दोइ नहिं बिप्रश्राप अति घोर॥174॥
चौपाई :
* अस कहि सब महिदेव सिधाए। समाचार पुरलोगन्ह पाए॥
सोचहिं दूषन दैवहि देहीं। बिरचत हंस काग किए जेहीं॥1॥
* उपरोहितहि भवन पहुँचाई। असुर तापसहि खबरि जनाई॥
तेहिं खल जहँ तहँ पत्र पठाए। सजि सजि सेन भूप सब धाए॥2॥
* घेरेन्हि नगर निसान बजाई। बिबिध भाँति नित होइ लराई॥
जूझे सकल सुभट करि करनी। बंधु समेत परेउ नृप धरनी॥3॥
* सत्यकेतु कुल कोउ नहिं बाँचा। बिप्रश्राप किमि होइ असाँचा॥
रिपु जिति सब नृप नगर बसाई। निज पुर गवने जय जसु पाई॥4॥

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