श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग : सखियों
ने लता की ओट में सुंदर श्याम और गौर कुमारों को
देखा और उनकी शोभा का बखान कर रही हैं
उसी समय दोनों भाई
लता मंडप (कुंज) में से प्रकट हुए। मानो दो निर्मल चन्द्रमा बादलों के परदे को
हटाकर निकले हों ।
दोनों सुंदर भाई शोभा
की सीमा हैं। उनके शरीर की आभा नीले और पीले कमल की सी है। सिर पर सुंदर मोरपंख
सुशोभित हैं। उनके बीच-बीच में फूलों की कलियों के गुच्छे लगे हैं ।माथे पर तिलक और
पसीने की बूँदें शोभायमान हैं। कानों में सुंदर भूषणों की छबि छाई है। टेढ़ी
भौंहें और घुँघराले बाल हैं। नए लाल कमल के समान रतनारे (लाल) नेत्र हैं ।ठोड़ी
नाक और गाल बड़े सुंदर हैं और हँसी की शोभा मन को मोल लिए लेती है। मुख की छबि तो
मुझसे कही ही नहीं जाती, जिसे देखकर बहुत से कामदेव लजा जाते हैं । वक्षःस्थल पर मणियों
की माला है। शंख के सदृश सुंदर गला है। कामदेव के हाथी के बच्चे की सूँड के समान
(उतार-चढ़ाव वाली एवं कोमल) भुजाएँ हैं,
जो बल की सीमा हैं। जिसके बाएँ हाथ में
फूलों सहित दोना है, हे
सखि! वह साँवला कुँअर तो बहुत ही सलोना है ।
* लताभवन तें प्रगट भे
तेहि अवसर दोउ भाइ।
तकिसे जनु जुग बिमल बिधु जलद पटल बिलगाई॥232॥
तकिसे जनु जुग बिमल बिधु जलद पटल बिलगाई॥232॥
* सोभा सीवँ सुभग दोउ
बीरा। नील पीत जलजाभ सरीरा॥
मोरपंख सिर सोहत नीके। गुच्छ बीच बिच कुसुम कली के॥1॥
मोरपंख सिर सोहत नीके। गुच्छ बीच बिच कुसुम कली के॥1॥
* भाल तिलक श्रम
बिन्दु सुहाए। श्रवन सुभग भूषन छबि छाए॥
बिकट भृकुटि कच घूघरवारे। नव सरोज लोचन रतनारे॥2॥
बिकट भृकुटि कच घूघरवारे। नव सरोज लोचन रतनारे॥2॥
* चारु चिबुक नासिका
कपोला। हास बिलास लेत मनु मोला॥
मुखछबि कहि न जाइ मोहि पाहीं। जो बिलोकि बहु काम लजाहीं॥3॥
मुखछबि कहि न जाइ मोहि पाहीं। जो बिलोकि बहु काम लजाहीं॥3॥
* उर मनि माल कंबु कल
गीवा। काम कलभ कर भुज बलसींवा॥
सुमन समेत बाम कर दोना। सावँर कुअँर सखी सुठि लोना॥4॥
सुमन समेत बाम कर दोना। सावँर कुअँर सखी सुठि लोना॥4॥
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