श्रीरामचरितमानस से
...बालकांड
प्रसंग : श्री राम-लक्ष्मण सहित विश्वामित्र का यज्ञशाला में प्रवेश
प्रसंग : श्री राम-लक्ष्मण सहित विश्वामित्र का यज्ञशाला में प्रवेश
शतानन्दजी
के चरणों की वंदना करके प्रभु श्री रामचन्द्रजी गुरुजी के पास जा बैठे। तब मुनि ने
कहा- हे तात! चलो, जनकजी ने बुला भेजा है । चलकर सीताजी के स्वयंवर को देखना चाहिए। देखें ईश्वर किसको बड़ाई
देते हैं। लक्ष्मणजी ने कहा- हे नाथ! जिस पर आपकी कृपा होगी, वही बड़ाई का पात्र होगा ; धनुष
तोड़ने का श्रेय उसी को प्राप्त होगा ।
इस श्रेष्ठ वाणी
को सुनकर सब मुनि प्रसन्न हुए। सभी ने सुख मानकर आशीर्वाद दिया। फिर मुनियों के
समूह सहित कृपालु श्री रामचन्द्रजी धनुष यज्ञशाला देखने चले ।
दोनों भाई
रंगभूमि में आए हैं, ऐसी खबर जब सब नगर निवासियों ने पाई, तब बालक,
जवान, बूढ़े, स्त्री,
पुरुष सभी घर और काम-काज को भुलाकर चल दिए । जब जनकजी ने देखा कि
बड़ी भीड़ हो गई है, तब उन्होंने सब विश्वासपात्र सेवकों को
बुलवा लिया और कहा- तुम लोग तुरंत सब लोगों के पास जाओ और सब किसी को यथायोग्य आसन
दो ।
।* सतानंद पद बंदि प्रभु बैठे गुर पहिं जाइ।
चलहु तात मुनि कहेउ तब पठवा जनक बोलाइ॥239॥.
चलहु तात मुनि कहेउ तब पठवा जनक बोलाइ॥239॥.
चौपाई :
* सीय स्वयंबरू देखिअ
जाई। ईसु काहि धौं देइ बड़ाई॥
लखन कहा जस भाजनु सोई। नाथ कृपा तव जापर होई॥1॥
लखन कहा जस भाजनु सोई। नाथ कृपा तव जापर होई॥1॥
* हरषे मुनि सब सुनि
बर बानी। दीन्हि असीस सबहिं सुखु मानी॥
पुनि मुनिबृंद समेत कृपाला। देखन चले धनुषमख साला॥2॥
पुनि मुनिबृंद समेत कृपाला। देखन चले धनुषमख साला॥2॥
* रंगभूमि आए दोउ भाई।
असि सुधि सब पुरबासिन्ह पाई॥
चले सकल गृह काज बिसारी। बाल जुबान जरठ नर नारी॥3॥
चले सकल गृह काज बिसारी। बाल जुबान जरठ नर नारी॥3॥
* देखी जनक भीर भै
भारी। सुचि सेवक सब लिए हँकारी॥
तुरत सकल लोगन्ह पहिं जाहू। आसन उचित देहु सब काहू॥4॥
तुरत सकल लोगन्ह पहिं जाहू। आसन उचित देहु सब काहू॥4॥
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