श्रीरामचरितमानस से
...बालकांड
प्रसंग : पुष्प
–वाटिका में
सीता सखियों के साथ
सखियों
ने देखा कि सीता का शरीर पुलकित है और नेत्रों में जल भरा है। सब कोमल वाणी से
पूछने लगीं कि अपनी प्रसन्नता का कारण बता ।जो गोरे (रंग के) हैं, उनके सौंदर्य को मैं कैसे बखानकर कहूँ। वाणी बिना नेत्र की है और नेत्रों
के वाणी नहीं है । यह सुनकर और सीताजी के हृदय में बड़ी उत्कंठा जानकर सब सयानी
सखियाँ प्रसन्न हुईं। तब एक सखी कहने लगी- हे सखी! ये वही राजकुमार हैं, जो सुना है कि कल विश्वामित्र मुनि के साथ आए हैं ।और जिन्होंने अपने रूप
की मोहिनी डालकर नगर के स्त्री-पुरुषों को अपने वश में कर लिया है। जहाँ-तहाँ सब
लोग उन्हीं की छबि का वर्णन कर रहे हैं। अवश्य उन्हें देखना चाहिए, वे देखने ही योग्य हैं ।
उसके वचन सीताजी को अत्यन्त ही प्रिय
लगे और दर्शन के लिए उनके नेत्र अकुला उठे। उसी प्यारी सखी को आगे करके सीताजी
चलीं। पुरानी प्रीति को कोई लख नहीं पाता ।
तासु दसा देखी सखिन्ह
पुलक गात जलु नैन।
कहु कारनु निज हरष कर पूछहिं सब मृदु बैन॥228॥
कहु कारनु निज हरष कर पूछहिं सब मृदु बैन॥228॥
*
सुनि हरषीं सब सखीं सयानी। सिय हियँ अति
उतकंठा जानी॥
एक कहइ नृपसुत तेइ आली। सुने जे मुनि सँग आए काली॥2॥
एक कहइ नृपसुत तेइ आली। सुने जे मुनि सँग आए काली॥2॥
* जिन्ह
निज रूप मोहनी डारी। कीन्हे स्वबस नगर नर नारी॥
बरनत छबि जहँ तहँ सब लोगू। अवसि देखिअहिं देखन जोगू॥3॥
बरनत छबि जहँ तहँ सब लोगू। अवसि देखिअहिं देखन जोगू॥3॥
* तासु
बचन अति सियहि सोहाने। दरस लागि लोचन अकुलाने॥
चली अग्र करि प्रिय सखि सोई। प्रीति पुरातन लखइ न कोई॥4॥
चली अग्र करि प्रिय सखि सोई। प्रीति पुरातन लखइ न कोई॥4॥
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