श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग :
प्रसंग :
अरुणोदय होने से कुमुदिनी सकुचा गई और
तारागणों का प्रकाश फीका पड़ गया, जिस प्रकार आपका आना सुनकर सब राजा बलहीन हो गए हैं ।
सब राजा रूपी तारे उजाला (मंद प्रकाश)
करते हैं, पर
वे धनुष रूपी महान अंधकार को हटा नहीं सकते। रात्रि का अंत होने से जैसे कमल, चकवे, भौंरे और नाना प्रकार
के पक्षी हर्षित हो रहे हैं ।
वैसे ही हे प्रभो! आपके सब भक्त धनुष
टूटने पर सुखी होंगे। सूर्य उदय हुआ,
बिना ही परिश्रम अंधकार नष्ट हो गया।
तारे छिप गए, संसार
में तेज का प्रकाश हो गया ।
हे रघुनाथजी! सूर्य ने अपने उदय के
बहाने सब राजाओं को प्रभु (आप) का प्रताप दिखलाया है। आपकी भुजाओं के बल की महिमा
को उद्घाटित करने के लिए ही धनुष तोड़ने की यह पद्धति प्रकट हुई है ।
भाई के वचन सुनकर प्रभु मुस्कुराए। फिर
स्वभाव से ही पवित्र श्री रामजी ने शौच से निवृत्त होकर स्नान किया और नित्यकर्म
करके वे गुरुजी के पास आए। आकर उन्होंने गुरुजी के सुंदर चरण कमलों में सिर नवाया ।
* अरुनोदयँ
सकुचे कुमुद उडगन जोति मलीन।
जिमि तुम्हार आगमन सुनि भए नृपति बलहीन॥238॥
जिमि तुम्हार आगमन सुनि भए नृपति बलहीन॥238॥
चौपाई :
* नृप
सब नखत करहिं उजिआरी। टारि न सकहिं चाप तम भारी॥
कमल कोक मधुकर खग नाना। हरषे सकल निसा अवसाना॥1॥
कमल कोक मधुकर खग नाना। हरषे सकल निसा अवसाना॥1॥
* ऐसेहिं
प्रभु सब भगत तुम्हारे। होइहहिं टूटें धनुष सुखारे॥
उयउ भानु बिनु श्रम तम नासा। दुरे नखत जग तेजु प्रकासा॥2॥
उयउ भानु बिनु श्रम तम नासा। दुरे नखत जग तेजु प्रकासा॥2॥
* रबि
निज उदय ब्याज रघुराया। प्रभु प्रतापु सब नृपन्ह दिखाया॥
तव भुज बल महिमा उदघाटी। प्रगटी धनु बिघटन परिपाटी।3॥
तव भुज बल महिमा उदघाटी। प्रगटी धनु बिघटन परिपाटी।3॥
* बंधु
बचन सुनि प्रभु मुसुकाने। होइ सुचि सहज पुनीत नहाने॥
कनित्यक्रिया करि गरु पहिं आए। चरन सरोज सुभग सिर नाए॥4॥
कनित्यक्रिया करि गरु पहिं आए। चरन सरोज सुभग सिर नाए॥4॥
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