श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग :
सीताजी को माँ गौरी का आशीर्वाद ; प्रसंग :
श्री राम –लक्ष्मण का पुष्प-वाटिका से
लौटना
माँ
गौरी ने सीता जी को आशीर्वाद दिया
-जिसमें तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है, वही स्वभाव से ही
सुंदर साँवला वर (श्री रामचन्द्रजी) तुमको मिलेगा। वह दया का खजाना और सुजान
(सर्वज्ञ) है, तुम्हारे
शील और स्नेह को जानता है। इस प्रकार श्री गौरीजी का आशीर्वाद सुनकर जानकीजी समेत
सब सखियाँ हृदय में हर्षित हुईं। तुलसीदासजी कहते हैं- भवानीजी को बार-बार पूजकर
सीताजी प्रसन्न मन से राजमहल को लौट चलीं ।
गौरीजी को अनुकूल जानकर सीताजी के हृदय
को जो हर्ष हुआ, वह
कहा नहीं जा सकता। सुंदर मंगलों के मूल उनके बाएँ अंग फड़कने लगे ।
हृदय में सीताजी के सौंदर्य की सराहना
करते हुए दोनों भाई गुरुजी के पास गए। श्री रामचन्द्रजी ने विश्वामित्र से सब कुछ
कह दिया, क्योंकि
उनका सरल स्वभाव है, छल
तो उसे छूता भी नहीं है। फूल
पाकर मुनि ने पूजा की। फिर दोनों भाइयों को आशीर्वाद दिया कि तुम्हारे मनोरथ सफल
हों। यह सुनकर श्री राम-लक्ष्मण सुखी हुए ।
श्रेष्ठ विज्ञानी मुनि विश्वामित्रजी
भोजन करके कुछ प्राचीन कथाएँ कहने लगे। इतने में दिन बीत गया और गुरु की आज्ञा
पाकर दोनों भाई संध्या करने चले ।
उधर पूर्व दिशा में सुंदर चन्द्रमा उदय
हुआ। श्री रामचन्द्रजी ने उसे सीता के मुख के समान देखकर सुख पाया। फिर मन में
विचार किया कि यह चन्द्रमा सीताजी के मुख के समान नहीं है।
* मनु
जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो॥
एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली॥
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो॥
एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली॥
सोरठा :
* जानि
गौरि अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे॥236॥
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे॥236॥
चौपाई :
* हृदयँ
सराहत सीय लोनाई। गुर समीप गवने दोउ भाई॥
राम कहा सबु कौसिक पाहीं। सरल सुभाउ छुअत छल नाहीं॥1॥
राम कहा सबु कौसिक पाहीं। सरल सुभाउ छुअत छल नाहीं॥1॥
* सुमन
पाइ मुनि पूजा कीन्ही। पुनि असीस दुहु भाइन्ह दीन्ही॥
सुफल मनोरथ होहुँ तुम्हारे। रामु लखनु सुनि भय सुखारे॥2॥
सुफल मनोरथ होहुँ तुम्हारे। रामु लखनु सुनि भय सुखारे॥2॥
* करि
भोजनु मुनिबर बिग्यानी। लगे कहन कछु कथा पुरानी॥
बिगत दिवसु गुरु आयसु पाई। संध्या करन चले दोउ भाई॥3॥
बिगत दिवसु गुरु आयसु पाई। संध्या करन चले दोउ भाई॥3॥
* प्राची
दिसि ससि उयउ सुहावा। सिय मुख सरिस देखि सुखु पावा॥
बहुरि बिचारु कीन्ह मन माहीं। सीय बदन सम हिमकर नाहीं॥4॥
बहुरि बिचारु कीन्ह मन माहीं। सीय बदन सम हिमकर नाहीं॥4॥
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