श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग :
सीताजी का पार्वती पूजन
पुष्पवाटिका में सीताजी मृग, पक्षी
और वृक्षों को देखने के बहाने बार-बार घूम
जाती हैं और श्री रामजी की छबि देख-देखकर उनका प्रेम बहुत ही बढ़ता जाता है ।
शिवजी के धनुष को कठोर जानकर वे मन में
विलाप करती हुई हृदय में श्री रामजी की साँवली मूर्ति को रखकर चलीं। प्रभु श्री
रामजी ने जब सुख, स्नेह, शोभा और गुणों की खान
श्री जानकीजी को जाती हुई जाना तब
परमप्रेम की कोमल स्याही बनाकर उनके स्वरूप को अपने सुंदर चित्त रूपी भित्ति पर
चित्रित कर लिया। सीताजी पुनः भवानीजी के मंदिर में गईं और उनके चरणों की वंदना
करके हाथ जोड़कर बोलीं-
हे श्रेष्ठ पर्वतों के राजा हिमाचल की
पुत्री पार्वती! आपकी जय हो, जय हो, हे
महादेवजी के मुख रूपी चन्द्रमा की चकोरी! आपकी जय हो, हे हाथी के मुख वाले
गणेशजी और छह मुख वाले स्वामिकार्तिकजी की माता! हे जगज्जननी! हे बिजली की सी कान्तियुक्त
शरीर वाली! आपकी जय हो।
आपका न आदि है, न मध्य है और न अंत
है। आपके असीम प्रभाव को वेद भी नहीं जानते। आप संसार को उत्पन्न, पालन और नाश करने
वाली हैं। विश्व को मोहित करने वाली और स्वतंत्र रूप से विहार करने वाली हैं ।
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* देखन
मिस मृग बिहग तरु फिरइ बहोरि बहोरि।
निरखि निरखि रघुबीर छबि बाढ़इ प्रीति न थोरि॥234॥
निरखि निरखि रघुबीर छबि बाढ़इ प्रीति न थोरि॥234॥
चौपाई :
* जानि
कठिन सिवचाप बिसूरति। चली राखि उर स्यामल मूरति॥
प्रभु जब जात जानकी जानी। सुख सनेह सोभा गुन खानी॥1॥
प्रभु जब जात जानकी जानी। सुख सनेह सोभा गुन खानी॥1॥
* परम
प्रेममय मृदु मसि कीन्ही। चारु चित्त भीतीं लिखि लीन्ही॥
गई भवानी भवन बहोरी। बंदि चरन बोली कर जोरी॥2॥
गई भवानी भवन बहोरी। बंदि चरन बोली कर जोरी॥2॥
*जय
जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी॥
जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता॥3॥
जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता॥3॥
* नहिं
तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना॥
भव भव बिभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि॥4॥
भव भव बिभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि॥4॥
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