श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
यों श्री रामजी छोटे भाई से बातें कर
रहे हैं, पर
मन सीताजी के रूप में लुभाया हुआ उनके मुखरूपी कमल के छबि रूप मकरंद रस को भौंरे
की तरह पी रहा है ।
सीताजी चकित होकर चारों ओर देख रही हैं।
मन इस बात की चिन्ता कर रहा है कि राजकुमार कहाँ चले गए। बाल मृगनयनी सीताजी जहाँ
दृष्टि डालती हैं, वहाँ
मानो श्वेत कमलों की कतार बरस जाती है ।
तब सखियों ने लता की ओट में सुंदर श्याम
और गौर कुमारों को दिखलाया। उनके रूप को देखकर नेत्र ललचा उठे, वे ऐसे प्रसन्न हुए
मानो उन्होंने अपना खजाना पहचान लिया ।
श्री रघुनाथजी की छबि देखकर नेत्र निश्चल
हो गए। पलकों ने भी गिरना छोड़ दिया। अधिक स्नेह के कारण शरीर विह्वल हो गया। मानो शरद ऋतु के चन्द्रमा को चकोरी देख
रही हो ।
नेत्रों के रास्ते श्री रामजी को हृदय
में लाकर चतुरशिरोमणि जानकीजी ने पलकों के किवाड़ लगा दिए जब सखियों ने सीताजी को
प्रेम के वश जाना, तब
वे मन में सकुचा गईं, कुछ
कह नहीं सकती थीं ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें