रविवार, 17 अप्रैल 2016

229: बालकांड: पुष्प –वाटिका में सीता और राम

श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
           
प्रसंग :
पुष्प –वाटिका में सीता और राम
                                         
नारदजी के वचनों का स्मरण करके सीताजी के मन में पवित्र प्रीति उत्पन्न हुई। वे चकित होकर सब ओर इस तरह देख रही हैं, मानो डरी हुई मृगछौनी इधर-उधर देख रही हो कंकण ,करधनी और पायजेब के शब्द सुनकर श्री रामचन्द्रजी हृदय में विचार कर लक्ष्मण से कहते हैं- यह ध्वनि ऐसी आ रही है मानो कामदेव ने विश्व को जीतने का संकल्प करके डंके पर चोट मारी है ।
ऐसा कहकर श्री रामजी ने फिर कर उस ओर देखा। श्री सीताजी के मुख रूपी चन्द्रमा को निहारने के लिए उनके नेत्र चकोर बन गए। सुंदर नेत्र स्थिर हो गए । मानो निमि (जनकजी के पूर्वज) ने (जिनका सबकी पलकों में निवास माना गया है, लड़की-दामाद के मिलन-प्रसंग को देखना उचित नहीं, इस भाव से) सकुचाकर पलकें छोड़ दीं
सीताजी की शोभा देखकर श्री रामजी ने बड़ा सुख पाया। हृदय में वे उसकी सराहना करते हैं, किन्तु मुख से वचन नहीं निकलते। वह शोभा ऐसी अनुपम है मानो ब्रह्मा ने अपनी सारी निपुणता को मूर्तिमान कर संसार को प्रकट करके दिखा दिया हो । सीताजी की शोभा सुंदरता को भी सुंदर करने वाली है। वह ऐसी मालूम होती है मानो सुंदरता रूपी घर में दीपक की लौ जल रही हो। तुलसीदास जी कहते हैं कि सारी उपमाओं को तो कवियों ने जूँठा कर रखा है। मैं जनकनन्दिनी श्री सीताजी की किससे उपमा दूँ॥4
दोहा :



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