श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग : सीताजी के मुख की बराबरी क्या चंद्रमा से हो सकती है ?
प्रसंग : सीताजी के मुख की बराबरी क्या चंद्रमा से हो सकती है ?
बेचारा गरीब चन्द्रमा सीताजी के मुख
की बराबरी कैसे पा सकता है , जिसका
जन्म
खारे समुद्र में हो
, फिर उसी समुद्र से उत्पन्न होने के कारण विष उसका भाई हो , दिन में जो मलिन रहता हो और काले दाग से युक्त हो ।
फिर यह घटता-बढ़ता है और विरहिणी
स्त्रियों को दुःख देने वाला है, राहु अपनी संधि में
पाकर इसे ग्रस लेता है। चकवे को शोक देने वाला और कमल का बैरी है। हे चन्द्रमा!
तुझमें बहुत से अवगुण हैं जो सीताजी में नहीं हैं।
अतः जानकीजी के मुख की तुझे उपमा देने
में बड़ा अनुचित कर्म करने का दोष लगेगा। इस प्रकार चन्द्रमा के बहाने सीताजी के
मुख की छबि का वर्णन करके,
बड़ी रात हो गई जान, वे गुरुजी के पास चले ।
मुनि के चरण कमलों में प्रणाम करके, आज्ञा पाकर उन्होंने विश्राम किया, रात बीतने पर श्री रघुनाथजी जागे और भाई को देखकर ऐसा कहने
लगे-
हे तात! देखो, कमल,
चक्रवाक और समस्त संसार को सुख देने
वाला अरुणोदय हुआ है। लक्ष्मणजी दोनों हाथ जोड़कर प्रभु के प्रभाव को सूचित करने
वाली कोमल वाणी बोले-
* जनमु
सिंधु पुनि बंधु बिषु दिन मलीन सकलंक।
सिय मुख समता पाव किमि चंदु बापुरो रंक॥237॥
सिय मुख समता पाव किमि चंदु बापुरो रंक॥237॥
* घटइ
बढ़इ बिरहिनि दुखदाई। ग्रसइ राहु निज संधिहिं पाई॥
कोक सोकप्रद पंकज द्रोही। अवगुन बहुत चंद्रमा तोही॥1॥
कोक सोकप्रद पंकज द्रोही। अवगुन बहुत चंद्रमा तोही॥1॥
* बैदेही
मुख पटतर दीन्हे। होइ दोषु बड़ अनुचित कीन्हे॥
सिय मुख छबि बिधु ब्याज बखानी। गुर पहिं चले निसा बड़ि जानी॥2॥
सिय मुख छबि बिधु ब्याज बखानी। गुर पहिं चले निसा बड़ि जानी॥2॥
* करि
मुनि चरन सरोज प्रनामा। आयसु पाइ कीन्ह बिश्रामा॥
बिगत निसा रघुनायक जागे। बंधु बिलोकि कहन अस लागे॥3॥
* उयउ
अरुन अवलोकहु ताता। पंकज कोक लोक सुखदाता॥
बोले लखनु जोरि जुग पानी। प्रभु प्रभाउ सूचक मृदु बानी॥4॥
बोले लखनु जोरि जुग पानी। प्रभु प्रभाउ सूचक मृदु बानी॥4॥
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