श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग : सखियाँ सीता से
सुंदर श्याम और गौर
कुमारों की
शोभा
का बखान कर रही हैं ।
श्रीरामचंद्र
जी के सिंह
की सी (पतली, लचीली) कमर वाले, पीताम्बर धारण किए हुए, शोभा और शील के भंडार, सूर्यकुल के भूषण श्री रामचन्द्रजी को देखकर सखियाँ अपने आपको
भूल गईं ।
एक
चतुर सखी धीरज धरकर, हाथ पकड़कर सीताजी से
बोली- गिरिजाजी का ध्यान फिर कर लेना, इस समय राजकुमार को
क्यों नहीं देख लेतीं ।
तब
सीताजी ने सकुचाकर नेत्र खोले और रघुकुल के दोनों सिंहों को अपने सामने देखा। नख से शिखा तक श्री रामजी की शोभा देखकर
और फिर पिता का प्रण याद करके उनका मन बहुत क्षुब्ध हो गया ।
जब
सखियों ने सीताजी को प्रेम के वश देखा, तब सब भयभीत होकर
कहने लगीं- बड़ी देर हो गई। अब चलना चाहिए। कल इसी समय फिर आएँगी, ऐसा कहकर एक सखी मन में हँसी ।
.सखी की यह रहस्यभरी
वाणी सुनकर सीताजी सकुचा गईं। देर हो गई जान उन्हें माता का भय लगा। बहुत धीरज
धरकर वे श्री रामचन्द्रजी को हृदय में ले आईं और (उनका ध्यान करती हुई) अपने को
पिता के अधीन जानकर लौट चलीं ।
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* केहरि कटि पट पीत धर
सुषमा सील निधान।
देखि भानुकुलभूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान॥233॥
देखि भानुकुलभूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान॥233॥
चौपाई
:
* धरि धीरजु एक आलि
सयानी। सीता सन बोली गहि पानी॥
बहुरि गौरि कर ध्यान करेहू। भूपकिसोर देखि किन लेहू॥1॥
बहुरि गौरि कर ध्यान करेहू। भूपकिसोर देखि किन लेहू॥1॥
* सकुचि सीयँ तब नयन
उघारे। सनमुख दोउ रघुसिंघ निहारे॥
नख सिख देखि राम कै सोभा। सुमिरि पिता पनु मनु अति छोभा॥2॥
नख सिख देखि राम कै सोभा। सुमिरि पिता पनु मनु अति छोभा॥2॥
* परबस सखिन्ह लखी जब
सीता। भयउ गहरु सब कहहिं सभीता॥
पुनि आउब एहि बेरिआँ काली। अस कहि मन बिहसी एक आली॥3॥
पुनि आउब एहि बेरिआँ काली। अस कहि मन बिहसी एक आली॥3॥
* गूढ़ गिरा सुनि सिय
सकुचानी। भयउ बिलंबु मातु भय मानी॥
धरि बड़ि धीर रामु उर आने। फिरी अपनपउ पितुबस जाने॥4॥
धरि बड़ि धीर रामु उर आने। फिरी अपनपउ पितुबस जाने॥4॥
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