श्रीरामचरितमानस से
...बालकांड
प्रसंग :जनकपुर
देखने के पश्चात रात्रि- विश्राम
भय, प्रेम,
विनय और बड़े संकोच
के साथ दोनों भाई गुरु के चरण कमलों में सिर नवाकर आज्ञा पाकर बैठे ।
रात्रि का प्रवेश
होते ही (संध्या के समय) मुनि ने आज्ञा दी, तब सबने
संध्यावंदन किया। फिर प्राचीन कथाएँ तथा इतिहास कहते-कहते रात्रि दो पहर बीत गई ।तब
श्रेष्ठ मुनि ने जाकर शयन किया। दोनों भाई उनके चरण दबाने लगे, जिनके चरण कमलों के (दर्शन एवं स्पर्श के) लिए वैराग्यवान् पुरुष भी
भाँति-भाँति के जप और योग करते हैं । वे ही दोनों भाई मानो प्रेम से जीते हुए
प्रेमपूर्वक गुरुजी के चरण कमलों को दबा रहे हैं। मुनि ने बार-बार आज्ञा दी, तब श्री रघुनाथजी ने जाकर शयन किया ।
श्री रामजी के चरणों
को हृदय से लगाकर भय और प्रेम सहित परम सुख का अनुभव करते हुए लक्ष्मणजी उनको दबा
रहे हैं। प्रभु श्री रामचन्द्रजी ने बार-बार कहा- हे तात! अब सो जाओ। तब वे उन चरण
कमलों को हृदय में धरकर लेटे रहे।
* सभय सप्रेम बिनीत अति सकुच सहित दोउ भाइ।
गुर पद पंकज नाइ सिर बैठे आयसु पाइ॥225॥
गुर पद पंकज नाइ सिर बैठे आयसु पाइ॥225॥
चौपाई :
* निसि प्रबेस मुनि आयसु दीन्हा। सबहीं संध्याबंदनु
कीन्हा॥
कहत कथा इतिहास पुरानी। रुचिर रजनि जुग जाम सिरानी॥1॥
कहत कथा इतिहास पुरानी। रुचिर रजनि जुग जाम सिरानी॥1॥
* मुनिबर सयन कीन्हि तब जाई। लगे चरन चापन दोउ भाई॥
जिन्ह के चरन सरोरुह लागी। करत बिबिध जप जोग बिरागी॥2॥
जिन्ह के चरन सरोरुह लागी। करत बिबिध जप जोग बिरागी॥2॥
*तेइ दोउ बंधु प्रेम जनु जीते। गुर पद कमल पलोटत
प्रीते॥
बार बार मुनि अग्या दीन्ही। रघुबर जाइ सयन तब कीन्ही॥3॥
बार बार मुनि अग्या दीन्ही। रघुबर जाइ सयन तब कीन्ही॥3॥
* चापत चरन लखनु उर लाएँ। सभय सप्रेम परम सचु पाएँ॥
पुनि पुनि प्रभु कह सोवहु ताता। पौढ़े धरि उर पद जलजाता॥4॥
पुनि पुनि प्रभु कह सोवहु ताता। पौढ़े धरि उर पद जलजाता॥4॥
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