श्रीरामचरितमानस से
...बालकांड
प्रसंग
: जनकपुर में सखियां श्री राम-लक्ष्मण के संबंध में
बातें करती हैं ।
वह कह रहीं हैं कि दोनों भाई ब्राह्मण
विश्वामित्र का काम करके और रास्ते में मुनि गौतम की स्त्री अहल्या का उद्धार करके
यहाँ धनुषयज्ञ देखने आए हैं। यह सुनकर सब स्त्रियाँ प्रसन्न हुई।
श्री रामचन्द्रजी की छबि देखकर कोई एक
दूसरी सखी कहने लगी- यह वर जानकी के योग्य है। हे सखी! यदि कहीं राजा इन्हें देख
ले, तो प्रतिज्ञा छोड़कर हठपूर्वक इन्हीं से विवाह
कर देगा ।
किसी ने कहा- राजा ने इन्हें पहचान
लिया है और मुनि के सहित इनका आदरपूर्वक सम्मान किया है, परंतु हे सखी! राजा अपना प्रण नहीं छोड़ता। वह
होनहार के वशीभूत होकर हठपूर्वक अविवेक का ही आश्रय लिए हुए हैं ।
कोई कहती है- यदि विधाता भले हैं और
सुना जाता है कि वे सबको उचित फल देते हैं, तो जानकीजी को यही वर मिलेगा। हे सखी! इसमें संदेह नहीं है ।
जो दैवयोग से ऐसा संयोग बन जाए, तो हम सब लोग कृतार्थ हो जाएँ। हे सखी! मेरे
तो इसी से इतनी अधिक आतुरता हो रही है कि इसी नाते कभी ये यहाँ आवेंगे ।
दोहा :
* बिप्रकाजु करि बंधु दोउ मग मुनिबधू उधारि।
आए देखन चापमख सुनि हरषीं सब नारि॥221॥
आए देखन चापमख सुनि हरषीं सब नारि॥221॥
चौपाई :
* देखि राम छबि कोउ एक कहई। जोगु जानकिहि यह बरु अहई॥
जौं सखि इन्हहि देख नरनाहू। पन परिहरि हठि करइ बिबाहू॥1॥
जौं सखि इन्हहि देख नरनाहू। पन परिहरि हठि करइ बिबाहू॥1॥
* कोउ कह ए भूपति पहिचाने। मुनि समेत सादर सनमाने॥
सखि परंतु पनु राउ न तजई। बिधि बस हठि अबिबेकहि भजई॥2॥
सखि परंतु पनु राउ न तजई। बिधि बस हठि अबिबेकहि भजई॥2॥
* कोउ कह जौं भल अहइ बिधाता। सब कहँ सुनिअ उचित फल दाता॥
तौ जानकिहि मिलिहि बरु एहू। नाहिन आलि इहाँ संदेहू॥3॥
तौ जानकिहि मिलिहि बरु एहू। नाहिन आलि इहाँ संदेहू॥3॥
* जौं बिधि बस अस बनै सँजोगू। तौ कृतकृत्य होइ सब लोगू॥
सखि हमरें आरति अति तातें। कबहुँक ए आवहिं एहि नातें॥4॥
सखि हमरें आरति अति तातें। कबहुँक ए आवहिं एहि नातें॥4॥
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