श्रीरामचरितमानस से
...बालकांड
प्रसंग : जनकपुर
में सखियाँ आपस में श्री राम-लक्ष्मण का परिचय देते हुए बातें करती हैं ।
श्री राम –लक्ष्मण मुनि की आज्ञा से
जनकपुर देखने निकले हैं । उनको देख कर सखियाँ आपस में बातें करती है । वह कहती हैं
कि इनकी किशोर अवस्था है, ये सुंदरता के घर,
साँवले और गोरे रंग के तथा सुख के धाम हैं। इनके अंग-अंग पर
करोड़ों-अरबों कामदेवों को निछावर कर देना चाहिए ।
हे सखी! कहो तो ऐसा कौन शरीरधारी होगा, जो इस रूप को देखकर मोहित न हो जाए। उनका यह रूप जड़-चेतन सबको मोहित करने वाला है।
तब कोई दूसरी सखी प्रेम सहित कोमल वाणी से बोली- हे सयानी! मैंने जो सुना है उसे
सुनो-
ये दोनों राजकुमार महाराज दशरथजी के
पुत्र हैं! बाल राजहंसों का सा सुंदर जोड़ा है। ये मुनि विश्वामित्र के यज्ञ की
रक्षा करने वाले हैं, इन्होंने युद्ध के
मैदान में राक्षसों को मारा है ।
जिनका श्याम शरीर और सुंदर कमल जैसे
नेत्र हैं, जो मारीच और सुबाहु
के मद को चूर करने वाले और सुख की खान हैं और जो हाथ में धनुष-बाण लिए हुए हैं,
वे कौसल्याजी के पुत्र हैं, इनका नाम राम है ।
जिनका रंग गोरा और किशोर अवस्था है और
जो सुंदर वेष बनाए और हाथ में धनुष-बाण लिए श्री रामजी के पीछे-पीछे चल रहे हैं, वे इनके छोटे भाई हैं, उनका
नाम लक्ष्मण है। हे सखी! सुनो, उनकी माता सुमित्रा हैं ।
* बय किसोर सुषमा सदन स्याम गौर सुख धाम।
अंग अंग पर वारिअहिं कोटि कोटि सत काम॥220॥
अंग अंग पर वारिअहिं कोटि कोटि सत काम॥220॥
* कहहु सखी अस को तनु धारी। जो न मोह यह रूप निहारी॥
कोउ सप्रेम बोली मृदु बानी। जो मैं सुना सो सुनहु सयानी॥1॥
कोउ सप्रेम बोली मृदु बानी। जो मैं सुना सो सुनहु सयानी॥1॥
* ए दोऊ दसरथ के ढोटा। बाल मरालन्हि के कल जोटा॥
मुनि कौसिक मख के रखवारे। जिन्ह रन अजिर निसाचर मारे॥2॥
मुनि कौसिक मख के रखवारे। जिन्ह रन अजिर निसाचर मारे॥2॥
* स्याम गात कल कंज बिलोचन। जो मारीच सुभुज मदु मोचन॥
कौसल्या सुत सो सुख खानी। नामु रामु धनु सायक पानी॥3॥
कौसल्या सुत सो सुख खानी। नामु रामु धनु सायक पानी॥3॥
* गौर किसोर बेषु बर काछें। कर सर चाप राम के पाछें॥
लछिमनु नामु राम लघु भ्राता। सुनु सखि तासु सुमित्रा माता॥4॥
लछिमनु नामु राम लघु भ्राता। सुनु सखि तासु सुमित्रा माता॥4॥
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