बुधवार, 16 मार्च 2016

224:बालकांड :जनकपुर में बालकों के साथ श्रीराम –लक्ष्मण के यज्ञ भूमि की रचना देखते हैं ।

श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड


  प्रसंग :जनकपुर में बालकों के साथ श्रीराम –लक्ष्मण के यज्ञ भूमि की रचना देखते हैं ।

 जनकपुर में  बालक सब प्रेम के वश में होकर श्री रामजी के मनोहर अंगों को छूकर शरीर से पुलकित हो रहे हैं और दोनों भाइयों को देख-देखकर उनके हृदय में अत्यन्त हर्ष हो रहा है श्री रामचन्द्रजी ने सब बालकों को प्रेम के वश जानकर यज्ञभूमि की स्थानों की प्रेमपूर्वक प्रशंसा की। इससे बालकों का उत्साह, आनंद और प्रेम और भी बढ़ गया, जिससे वे सब अपनी-अपनी रुचि के अनुसार उन्हें बुला लेते हैं और प्रत्येक के बुलाने पर दोनों भाई प्रेम सहित उनके पास चले जाते हैं ।
कोमल, मधुर और मनोहर वचन कहकर श्री रामजी अपने छोटे भाई लक्ष्मण को यज्ञभूमि की रचना दिखलाते हैं। जिनकी आज्ञा पाकर माया लव निमेष में ब्रह्माण्डों के समूह रच डालती है, वही दीनों पर दया करने वाले श्री रामजी भक्ति के कारण धनुष यज्ञ शाला को चकित होकर देख रहे हैं। इस प्रकार सब कौतुक देखकर वे गुरु के पास चले। देर हुई जानकर उनके मन में डर है ।
जिनके भय से डर को भी डर लगता है, वही प्रभु भजन का प्रभाव (जिसके कारण ऐसे महान प्रभु भी भय का नाट्य करते हैं) दिखला रहे हैं। उन्होंने कोमल, मधुर और सुंदर बातें कहकर बालकों को जबर्दस्ती विदा किया ।
दोहा :
* सब सिसु एहि मिस प्रेमबस परसि मनोहर गात।
तन पुलकहिं अति हरषु हियँ देखि देखि दोउ भ्रात॥224
चौपाई :
* सिसु सब राम प्रेमबस जाने। प्रीति समेत निकेत बखाने॥
निज निज रुचि सब लेहिं बोलाई। सहित सनेह जाहिं दोउ भाई॥1
* राम देखावहिं अनुजहि रचना। कहि मृदु मधुर मनोहर बचना॥
लव निमेष महुँ भुवन निकाया। रचइ जासु अनुसासन माया॥2
*भगति हेतु सोइ दीनदयाला। चितवत चकित धनुष मखसाला॥
कौतुक देखि चले गुरु पाहीं। जानि बिलंबु त्रास मन माहीं॥3
* जासु त्रास डर कहुँ डर होई। भजन प्रभाउ देखावत सोई॥
कहि बातें मृदु मधुर सुहाईं। किए बिदा बालक बरिआईं॥4





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