श्रीरामचरितमानस से
...बालकांड
प्रसंग : श्री राम-लक्ष्मण का जनकपुर निरीक्षण
श्री राम और लक्ष्मण दोनों भाइयों के सिर पर
सुंदर टोपियाँ हैं, काले और घुँघराले बाल हैं। दोनों भाई नख से
लेकर शिखा तक सुंदर हैं और सारी शोभा जहाँ
जैसी चाहिए वैसी ही है ।
जब पुरवासियों ने यह समाचार पाया कि
दोनों राजकुमार नगर देखने के लिए आए हैं, तब वे सब घर-बार और सब काम-काज छोड़कर ऐसे दौड़े मानो धन का खजाना लूटने
दौड़े हों ।
स्वभाव ही से सुंदर दोनों भाइयों को
देखकर वे लोग नेत्रों का फल पाकर सुखी हो रहे हैं। युवती स्त्रियाँ घर के झरोखों
से लगी हुई प्रेम सहित श्री रामचन्द्रजी के रूप को देख रही हैं ।
वे आपस में बड़े प्रेम से बातें कर
रही हैं- हे सखी! इन्होंने करोड़ों कामदेवों की छबि को जीत लिया है। देवता, मनुष्य, असुर, नाग और मुनियों में ऐसी शोभा तो कहीं सुनने में भी नहीं आती
भगवान विष्णु के चार भुजाएँ हैं, ब्रह्माजी के चार मुख हैं, शिवजी का विकट वेष है और उनके पाँच मुँह हैं। हे सखी! दूसरा देवता भी कोई
ऐसा नहीं है, जिसके साथ इस छबि की उपमा दी जाए ।
* रुचिर चौतनीं सुभग सिर मेचक कुंचित केस।
नख सिख सुंदर बंधु दोउ सोभा सकल सुदेस॥219॥
नख सिख सुंदर बंधु दोउ सोभा सकल सुदेस॥219॥
चौपाई
* देखन नगरु भूपसुत आए। समाचार पुरबासिन्ह पाए॥
धाए धाम काम सब त्यागी। मनहुँ रंक निधि लूटन लागी॥1॥
धाए धाम काम सब त्यागी। मनहुँ रंक निधि लूटन लागी॥1॥
* निरखि सहज सुंदर दोउ भाई। होहिं सुखी लोचन फल पाई॥
जुबतीं भवन झरोखन्हि लागीं। निरखहिं राम रूप अनुरागीं॥2॥
जुबतीं भवन झरोखन्हि लागीं। निरखहिं राम रूप अनुरागीं॥2॥
* कहहिं परसपर बचन सप्रीती। सखि इन्ह कोटि काम छबि जीती॥
सुर नर असुर नाग मुनि माहीं। सोभा असि कहुँ सुनिअति नाहीं॥3॥
सुर नर असुर नाग मुनि माहीं। सोभा असि कहुँ सुनिअति नाहीं॥3॥
* बिष्नु चारि भुज बिधि मुख चारी। बिकट बेष मुख पंच पुरारी॥
अपर देउ अस कोउ ना आही। यह छबि सखी पटतरिअ जाही॥4॥
अपर देउ अस कोउ ना आही। यह छबि सखी पटतरिअ जाही॥4॥
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