रविवार, 6 मार्च 2016

218:बालकांड: राम-लक्ष्मण का जनकपुर निरीक्षण

श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड

  प्रसंग : श्री राम-लक्ष्मण का जनकपुर निरीक्षण 
  

मुनिवर विश्वामित्र ने  दोनों भाई को कहा कि  जाकर नगर देख आओ। अपने सुंदर मुख दिखलाकर सब नगर निवासियों के नेत्रों को सफल करो ।.
सब लोकों के नेत्रों को सुख देने वाले दोनों भाई मुनि के चरणकमलों की वंदना करके चले। बालकों के झुंड इन के सौंदर्य की अत्यन्त शोभा देखकर साथ लग गए। उनके नेत्र और मन लुभा गए ।
दोनों भाइयों के पीले रंग के वस्त्र हैं, कमर के पीले दुपट्टों में तरकस बँधे हैं। हाथों में सुंदर धनुष-बाण सुशोभित हैं। श्याम और गौर वर्ण के शरीरों के अनुकूल सुंदर चंदन की खौर लगी है। साँवरे और गोरे रंग की मनोहर जोड़ी है ।

सिंह के समान गले का पिछला भाग है, विशाल भुजाएँ हैं। चौड़ी छाती पर अत्यन्त सुंदर गजमुक्ता की माला है। सुंदर लाल कमल के समान नेत्र हैं। तीनों तापों से छुड़ाने वाला चन्द्रमा के समान मुख है॥
कानों में सोने के कर्णफूल अत्यन्त शोभा दे रहे हैं और देखते ही देखने वाले के चित्त को मानो चुरा लेते हैं। उनकी दृष्टि) बड़ी मनोहर है और भौंहें तिरछी एवं सुंदर हैं। माथे पर तिलक की रेखाएँ ऐसी सुंदर हैं, मानो शोभा पर मुहर लगा दी गई है ।


* जाइ देखि आवहु नगरु सुख निधान दोउ भाइ।
करहु सुफल सब के नयन सुंदर बदन देखाइ॥218

चौपाई :
* मुनि पद कमल बंदि दोउ भ्राता। चले लोक लोचन सुख दाता॥
बालक बृंद देखि अति सोभा। लगे संग लोचन मनु लोभा॥1

* पीत बसन परिकर कटि भाथा। चारु चाप सर सोहत हाथा॥
तन अनुहरत सुचंदन खोरी। स्यामल गौर मनोहर जोरी॥2

* केहरि कंधर बाहु बिसाला। उर अति रुचिर नागमनि माला॥
सुभग सोन सरसीरुह लोचन। बदन मयंक तापत्रय मोचन॥3

* कानन्हि कनक फूल छबि देहीं। चितवत चितहि चोरि जनु लेहीं॥
चितवनि चारु भृकुटि बर बाँकी। तिलक रेख सोभा जनु चाँकी॥4



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