श्रीरामचरितमानस से
...बालकांड
प्रसंग : जनकपुर का विवरण
जनकपुर के उज्ज्वल
महलों में अनेक प्रकार के सुंदर रीति से बने हुए मणि जटित सोने की जरी के परदे लगे
हैं। सीताजी के रहने के सुंदर महल की शोभा का वर्णन किया ही कैसे जा सकता है । राजमहल
के सब दरवाजे सुंदर हैं, जिनमें वज्र के मजबूत किवाड़ लगे हैं। वहाँ राजाओं, नटों, मागधों
और भाटों की भीड़ लगी रहती है। घोड़ों और हाथियों के लिए बहुत बड़ी-बड़ी घुड़सालें और
गजशालाएँ बनी हुई हैं, जो सब समय घोड़े, हाथी और रथों से भरी रहती हैं ।
बहुत से शूरवीर, मंत्री और सेनापति हैं। उन सबके घर
भी राजमहल सरीखे ही हैं। नगर के बाहर तालाब और नदी के निकट जहाँ-तहाँ बहुत से राजा
लोग उतरे हुए हैं ।
वहीं आमों का एक अनुपम बाग देखकर, जहाँ
सब प्रकार के सुभीते थे और जो सब तरह से सुहावना था, विश्वामित्रजी ने कहा- हे
सुजान रघुवीर! मेरा मन कहता है कि यहीं रहा जाए । कृपा के धाम श्री रामचन्द्रजी 'बहुत
अच्छा स्वामिन्!' कहकर वहीं मुनियों के समूह के साथ ठहर गए।
मिथिलापति जनकजी ने जब यह समाचार पाया कि महामुनि
विश्वामित्र आए हैं,
तब उन्होंने मंत्री बहुत से योद्धा, श्रेष्ठ
ब्राह्मण, गुरु
(शतानंदजी) और अपनी जाति के श्रेष्ठ लोगों को साथ लिया और इस प्रकार प्रसन्नता के
साथ राजा मुनियों के स्वामी विश्वामित्रजी से मिलने चले ।
दोहा :
*धवल
धाम मनि पुरट पट सुघटित नाना भाँति।
सिय निवास सुंदर सदन सोभा किमि कहि जाति॥213॥
सिय निवास सुंदर सदन सोभा किमि कहि जाति॥213॥
चौपाई :
* सुभग
द्वार सब कुलिस कपाटा। भूप भीर नट मागध भाटा॥
बनी बिसाल बाजि गज साला। हय गय रख संकुल सब काला॥1॥
बनी बिसाल बाजि गज साला। हय गय रख संकुल सब काला॥1॥
* सूर
सचिव सेनप बहुतेरे। नृपगृह सरिस सदन सब केरे॥
पुर बाहेर सर सरित समीपा। उतरे जहँ तहँ बिपुल महीपा॥2॥
पुर बाहेर सर सरित समीपा। उतरे जहँ तहँ बिपुल महीपा॥2॥
* देखि
अनूप एक अँवराई। सब सुपास सब भाँति सुहाई।
कौसिक कहेउ मोर मनु माना। इहाँ रहिअ रघुबीर सुजाना॥3॥
कौसिक कहेउ मोर मनु माना। इहाँ रहिअ रघुबीर सुजाना॥3॥
* भलेहिं
नाथ कहि कृपानिकेता। उतरे तहँ मुनि बृंद समेता॥
बिस्वामित्र महामुनि आए। समाचार मिथिलापति पाए॥4॥
बिस्वामित्र महामुनि आए। समाचार मिथिलापति पाए॥4॥
दोहा :
* संग
सचिव सुचि भूरि भट भूसुर बर गुर ग्याति।
चले मिलन मुनिनायकहि मुदित राउ एहि भाँति॥214॥
चले मिलन मुनिनायकहि मुदित राउ एहि भाँति॥214॥
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