श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग : विश्वामित्र-यज्ञ की रक्षा
राजा
ने बहुत प्रकार से आशीर्वाद देकर पुत्रों को ऋषि के हवाले कर दिया। फिर प्रभु
माता के महल में गए और उनके चरणों में सिर नवाकर चले ।
पुरुषों
में सिंह रूप दोनों भाई (राम-लक्ष्मण) मुनि का भय हरने के लिए प्रसन्न होकर चले।
वे कृपा के समुद्र, धीर बुद्धि और सम्पूर्ण विश्व के कारण के भी कारण हैं ।
सब
अस्त्र-शस्त्र समर्पण करके मुनि प्रभु श्री रामजी को अपने आश्रम में ले आए और
उन्हें परम हितू जानकर भक्तिपूर्वक कंद, मूल और फल का भोजन कराया। सबेरे श्री रघुनाथजी ने
मुनि से कहा- आप जाकर निडर होकर यज्ञ कीजिए। यह सुनकर सब मुनि हवन करने लगे। श्री
रामजी यज्ञ की रखवाली पर रहे ।
यह
समाचार सुनकर मुनियों का शत्रु राक्षस मारीच अपने सहायकों को लेकर दौड़ा। श्री
रामजी ने बिना फल वाला बाण उसको मारा, जिससे वह सौ योजन के विस्तार वाले समुद्र के पार जा
गिरा ।
फिर
सुबाहु को अग्निबाण मारा। इधर छोटे भाई लक्ष्मणजी ने राक्षसों की सेना का संहार
कर डाला। इस प्रकार श्री रामजी ने राक्षसों को मारकर ब्राह्मणों को निर्भय कर
दिया। तब सारे देवता और मुनि स्तुति करने लगे ।
श्री रघुनाथजी
ने वहाँ कुछ दिन और रहकर ब्राह्मणों पर दया की। भक्ति के कारण ब्राह्मणों ने
उन्हें पुराणों की बहुत सी कथाएँ कहीं, यद्यपि प्रभु सब जानते थे ।
तदन्तर
मुनि ने आदरपूर्वक समझाकर कहा- हे प्रभो! चलकर एक चरित्र देखिए। रघुकुल के स्वामी
श्री रामचन्द्रजी धनुषयज्ञ की बात सुनकर मुनिश्रेष्ठ विश्वामित्रजी के साथ
प्रसन्न होकर चले ।
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