श्रीरामचरितमानस से
...बालकांड
प्रसंग : जनकपुर की शोभा
जनकपुर में
पुष्प बाग और वन, जिनमें बहुत से पक्षियों का निवास है,
फूलते, फलते और सुंदर पत्तों से लदे हुए नगर
के चारों ओर सुशोभित हैं ।
नगर की सुंदरता का वर्णन करते नहीं बनता। मन जहाँ
जाता है,
वहीं रम जाता है। सुंदर बाजार है, मणियों से
बने हुए विचित्र छज्जे हैं, मानो ब्रह्मा ने उन्हें अपने
हाथों से बनाया है ।
कुबेर के समान श्रेष्ठ धनी व्यापारी सब प्रकार की
अनेक वस्तुएँ लेकर दुकानों में बैठे हैं। सुंदर चौराहे और सुहावनी गलियाँ सदा
सुगंध से सिंची रहती हैं॥2॥
सबके घर मंगलमय हैं और उन पर चित्र कढ़े हुए हैं, जिन्हें मानो कामदेव रूपी चित्रकार ने अंकित किया है। नगर के सभी
स्त्री-पुरुष सुंदर, पवित्र, साधु
स्वभाव वाले, धर्मात्मा, ज्ञानी और
गुणवान हैं ।
जहाँ जनकजी का अत्यन्त अनुपम महल है, वहाँ के ऐश्वर्य को देखकर देवता भी स्तम्भित हो जाते हैं ,मनुष्यों की तो बात ही क्या!
राजमहल के परकोटे को देखकर चित्त चकित हो जाता है, ऐसा
मालूम होता है मानो उसने समस्त लोकों की शोभा को घेर रखा है । उज्ज्वल महलों में
अनेक प्रकार के सुंदर रीति से बने हुए मणि जटित सोने की जरी के परदे लगे हैं।
सीताजी के रहने के सुंदर महल की शोभा का वर्णन किया ही कैसे जा सकता है ।
दोहा :
* सुमन बाटिका बाग बन बिपुल बिहंग निवास।
फूलत फलत सुपल्लवत सोहत पुर चहुँ पास॥212।
फूलत फलत सुपल्लवत सोहत पुर चहुँ पास॥212।
चौपाई :
* बनइ न बरनत नगर निकाई। जहाँ जाइ मन तहँइँ लोभाई॥
चारु बजारु बिचित्र अँबारी। मनिमय बिधि जनु स्वकर सँवारी॥1॥
चारु बजारु बिचित्र अँबारी। मनिमय बिधि जनु स्वकर सँवारी॥1॥
*धनिक बनिक बर धनद समाना। बैठे सकल बस्तु लै नाना।
चौहट सुंदर गलीं सुहाई। संतत रहहिं सुगंध सिंचाई॥2॥
चौहट सुंदर गलीं सुहाई। संतत रहहिं सुगंध सिंचाई॥2॥
* मंगलमय मंदिर सब केरें। चित्रित जनु रतिनाथ
चितेरें॥
पुर नर नारि सुभग सुचि संता। धरमसील ग्यानी गुनवंता॥3॥
पुर नर नारि सुभग सुचि संता। धरमसील ग्यानी गुनवंता॥3॥
*अति अनूप जहँ जनक निवासू। बिथकहिं बिबुध बिलोकि
बिलासू॥
होत चकित चित कोट बिलोकी। सकल भुवन सोभा जनु रोकी॥4॥
होत चकित चित कोट बिलोकी। सकल भुवन सोभा जनु रोकी॥4॥
दोहा :
*धवल धाम मनि पुरट पट सुघटित नाना भाँति।
सिय निवास सुंदर सदन सोभा किमि कहि जाति॥213॥
सिय निवास सुंदर सदन सोभा किमि कहि जाति॥213॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें